कोर्ट ने कहा, शादी के दौरान मिले गहने, नकद और अन्य उपहार महिला की संपत्ति माने जाएंगे : पति को 6 हफ्तों में 17.67 लाख रुपये जमा करने का आदेश
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तलाकशुदा महिलाओं के अधिकारों पर एक ऐतिहासिक और स्पष्ट आदेश जारी किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि विवाह के बाद महिला अपने साथ जो भी सामान लेकर आई थी। चाहे वह नकदी हो, सोना हो या कोई और उपहार वह उसकी निजी संपत्ति है और तलाक की स्थिति में उसे उसका पूर्ण अधिकार मिलता है।
अदालत ने साफ किया कि शादी खत्म होने के बाद महिला को वे सभी चीजें वापस मिलनी चाहिए जो उसके माता-पिता या रिश्तेदारों ने विवाह के समय उसे या उसके पति को दी थीं। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, यह केवल भावनात्मक मामला नहीं बल्कि यह महिला की संपत्ति और कानूनी अधिकार से जुड़ा मुद्दा है।
जजों की टिप्पणी
यह फैसला जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सुनाया।
बेंच ने स्पष्ट किया कि 1986 का मुस्लिम महिला अधिनियम केवल एक सामान्य पारिवारिक विवाद का कानून नहीं है, बल्कि इसे संविधान में वादा की गई बराबरी और स्वतंत्रता के अनुरूप समझा जाना चाहिए।
अदालत ने कानून की धारा 3 का हवाला देते हुए कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को वह सभी संपत्तियाँ मिलनी चाहिए जो: शादी से पहले, शादी के दौरान, और शादी के बाद उसे प्राप्त हुई हों।
पुराने फैसले की याद दिलाई
पीठ ने अपने निर्णय में डैनियल लतीफी बनाम भारत संघ (2001) केस का उल्लेख भी किया।
उस समय भी संविधान पीठ ने माना था कि तलाक के बाद मुस्लिम महिला को आर्थिक सुरक्षा देने के लिए पर्याप्त प्रावधान होना आवश्यक है और कानून की व्याख्या इसी दृष्टिकोण से होनी चाहिए।
याचिकाकर्ता महिला को राहत
यह आदेश एक मुस्लिम महिला की याचिका पर सुनाया गया। अदालत ने महिला के पूर्व पति को निर्देश दिया कि वह: 17,67,980 रुपये,महिला के बैंक खाते में जमा करे।
यह रकम मेहर, दहेज, 30 तोला सोने के आभूषण, और टीवी, फ्रिज, स्टेबलाइज़र, शोकेस, डाइनिंग सेट, फर्नीचर और बॉक्स बेड जैसे घरेलू सामान के मूल्य को जोड़कर तय की गई है।
भुगतान के लिए समय सीमा
सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि: भुगतान 6 हफ्तों के भीतर किया जाए,रकम जमा करने का सबूत अदालत में पेश किया जाए,नियमानुसार भुगतान न करने पर 9% वार्षिक ब्याज देना पड़ेगा
कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्णय पर कठोर टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के 2022 के निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें महिला को पूरी रकम देने से इनकार किया गया था।
पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने कानून के सामाजिक न्याय के उद्देश्य को नजरअंदाज कर दिया और शादी के रजिस्टर की प्रविष्टियों जैसे भ्रमित करने वाले विवरणों पर निर्भर होकर गलत निष्कर्ष निकाला।
यह फैसला तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के आर्थिक अधिकारों और सम्मान को मजबूत करने वाला बड़ा निर्णय माना जा रहा है। अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि विवाह के दौरान मिले उपहार और संपत्तियाँ महिला की ही रहेंगी चाहे शादी जारी रहे या समाप्त हो जाए।








