पदोन्नति और ओबीसी आरक्षण पर अटका मध्य प्रदेश, कोर्टी पेच में फंसी भर्तियां : 80 हजार कर्मचारी बिना पदोन्नति रिटायर, युवा अब भी इंतजार में
भोपाल। मध्य प्रदेश में पदोन्नति और अन्य पिछड़ा वर्ग OBC आरक्षण का विवाद वर्षों से उलझा हुआ है। सरकारों ने समय-समय पर समाधान निकालने की कोशिशें कीं, नए नियम भी बनाए गए, लेकिन कानूनी अड़चनों के कारण मामला बार-बार अदालत तक पहुंचता रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि 80 हजार से अधिक अधिकारी और कर्मचारी बिना पदोन्नति पाए ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं। ओबीसी आरक्षण की स्थिति भी इससे अलग नहीं है, जहां भर्तियां और परीक्षाओं के परिणाम लंबे समय से प्रभावित हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कमल नाथ सरकार ने ओबीसी वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का निर्णय लिया था। हालांकि यह व्यवस्था अदालत में चुनौती के चलते लागू नहीं हो सकी। मामला अब भी न्यायिक विचाराधीन है, जिसके कारण कई विभागों में नियुक्तियां अटकी हुई हैं।
पदोन्नति से जुड़े विवाद की जड़ वर्ष 2002 के नियमों से जुड़ी है। हाई कोर्ट, जबलपुर ने 2016 में इन नियमों को विधिसम्मत नहीं मानते हुए रद्द कर दिया था। राज्य सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां से अब तक अंतिम निर्णय नहीं हो सका। इसके बाद से प्रदेश में नियमित पदोन्नतियां लगभग ठप हो गईं।
शिवराज सरकार के कार्यकाल में कर्मचारियों की नाराजगी को देखते हुए एक वैकल्पिक व्यवस्था लागू की गई। पदोन्नति के पात्र अधिकारी-कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार सौंपा गया, जिससे उन्हें आर्थिक लाभ तो नहीं मिला, लेकिन पदनाम के साथ प्रभारी जुड़ने से एक प्रशासनिक दर्जा जरूर मिला।
इसी दौरान नए नियम तैयार करने की प्रक्रिया भी कई बार चली। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज गोरकेला से मसौदा बनवाया गया। तत्कालीन गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसने सभी पक्षों की सुनवाई कर अपनी सिफारिशें भी दीं, लेकिन व्यावहारिक रूप से स्थिति में बदलाव नहीं आ सका। सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस विषय में रुचि दिखाई।
मुख्य सचिव अनुराग जैन और तत्कालीन अपर मुख्य सचिव संजय दुबे के नेतृत्व में कई बैठकों के बाद पदोन्नति नियम-2025 तैयार किए गए। सरकार ने इन्हें मंजूरी देकर लागू भी कर दिया, लेकिन आरक्षण से जुड़े प्रावधानों को लेकर विवाद फिर खड़ा हो गया।
नए नियमों में भी वे ही बिंदु शामिल किए गए, जिन पर सामान्य वर्ग को आपत्ति थी। इस कारण मामला फिर हाई कोर्ट पहुंच गया। अदालत में नियमित सुनवाई चल रही है और दोनों पक्ष अपनी दलीलें रख चुके हैं। अगली सुनवाई 16 दिसंबर को निर्धारित है।
ओबीसी आरक्षण का प्रश्न भी प्रदेश में लगातार उलझा हुआ है। 27 प्रतिशत आरक्षण पर राजनीतिक स्तर पर सहमति तो दिखाई देती है, लेकिन कानूनी पेच ऐसे हैं कि समाधान आसान नहीं हो पा रहा। युवाओं की परेशानी को देखते हुए सरकार ने एक अस्थायी फार्मूला अपनाया, जिसके तहत 13 प्रतिशत पद रोककर 87 प्रतिशत पदों के परिणाम जारी किए गए।
हालांकि इन 13 प्रतिशत पदों के लिए पात्र अभ्यर्थी अब भी असमंजस में हैं। उनकी आयु सीमा बढ़ती जा रही है और दूसरी परीक्षाओं के अवसर भी धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। समाधान में हो रही देरी से असंतोष बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाकर आम सहमति बनाने की पहल की थी, जिसमें सभी दलों ने एकजुटता का संदेश दिया, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति अब भी जस की तस बनी हुई है।








