51 दिन जेल में रहा रेप केस में आरोपी, फिर महिला बोली गलतफहमी की वजह से दर्ज हुई थी FIR, कोर्ट ने किया बरी
पश्चिम बंगाल में पांच साल से चल रहा एक हाई-प्रोफाइल केस आखिरकार नए मोड़ पर आकर खत्म हो गया। जिस शख्स पर 2017 से लेकर 2020 के बीच रेप और धोखाधड़ी का आरोप लगा था, अदालत ने उसे पूरी तरह निर्दोष करार दे दिया है। यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि रिश्तों में गलतफहमी और आरोप-प्रत्यारोप के खतरनाक परिणामों की ओर भी इशारा करता है।
कैसे शुरू हुआ था विवाद?
जनवरी 2017 में महिला की मुलाकात आरोपी से हुई। महिला का कहना था कि युवक ने उसे शादी का प्रस्ताव दिया और भरोसा दिलाया कि वह 23 नवंबर 2020 को शादी करेगा। इसी भरोसे के चलते दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं और शारीरिक संबंध भी बने।
महिला ने आरोप लगाया कि शादी से ठीक एक दिन पहले आरोपी उसे होटल ले गया, जहां दोनों ने रात साथ बिताई। लेकिन अगली सुबह युवक ने शादी से साफ इंकार कर दिया और वहां से भाग निकला। इसके अगले ही दिन, यानी 24 नवंबर 2020 को महिला ने बारटोला थाने में युवक के खिलाफ रेप और धोखाधड़ी की एफआईआर दर्ज करा दी।
आरोपी की गिरफ्तारी और जेल
पुलिस ने केस दर्ज करने के बाद 25 नवंबर 2020 को युवक को गिरफ्तार कर लिया। उसे 51 दिन जेल में रहना पड़ा और बाद में 14 जनवरी 2021 को जमानत मिली। मार्च 2021 में पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी थी।
केस का ट्रायल काफी लंबे समय तक टलता रहा और आखिरकार मार्च 2025 में सुनवाई शुरू हुई।
कोर्ट में महिला का पलटा बयान
20 मार्च 2025 को जब महिला अदालत में गवाही देने पहुंची, तो उसने बड़ा खुलासा किया। उसने कहा कि उसके और आरोपी के बीच संबंध जरूर थे, लेकिन केस दर्ज करवाने की वजह एक गलतफहमी थी। महिला ने जज अनिंद्य बनर्जी को बताया कि शिकायत उसकी दोस्त ने लिखी थी और वास्तव में उसे यह भी याद नहीं कि उसमें क्या-क्या लिखा गया था।
उसने स्वीकार किया कि रिपोर्ट दर्ज कराना उसकी भूल थी और यह भी माना कि एफआईआर गलतफहमी के चलते कराई गई थी।
पुलिस और कोर्ट की दलीलें
पुलिस का दावा था कि महिला ने लिखित शिकायत दी थी और धारा 164 CrPC के तहत मजिस्ट्रेट के सामने बयान भी दर्ज कराया था। इसके अलावा पहचान परेड में भी महिला ने आरोपी की शिनाख्त की थी। होटल की बुकिंग डिटेल्स भी पुलिस ने सबूत के तौर पर पेश कीं।
हालांकि, जज अनिंद्य बनर्जी ने छह पन्नों के आदेश में साफ लिखा कि इस केस में यह स्पष्ट है कि दोनों वयस्क आपसी सहमति से संबंध बना रहे थे। इसे रेप नहीं कहा जा सकता।
उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 376 (रेप) और 417 (धोखाधड़ी) के तहत आरोप साबित करने में पूरी तरह विफल रहा। किसी भी गवाह ने महिला के आरोपों की पुष्टि नहीं की।
नतीजा आरोपी को मिली राहत
अदालत ने माना कि सबूतों और गवाही की रोशनी में आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए। नतीजतन, युवक को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।
यह मामला दिखाता है कि गलतफहमी या जल्दबाजी में दर्ज कराई गई शिकायतें किसी की जिंदगी पर कितना गहरा असर डाल सकती हैं। आरोपी को न केवल जेल में 51 दिन बिताने पड़े, बल्कि पांच साल तक केस का बोझ भी झेलना पड़ा।