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पितृपक्ष में क्या करें और क्या न करें | श्राद्ध, तर्पण और दान का महत्व

पितृ पक्ष में क्या करे ...

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पितृ पक्ष में क्या करे क्या न करे….

पितृ पक्ष प्रारंभ हो गया है अक्सर आप लोग मुझसे पूछते हैं की गुरुजी इसमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। मेरा विचार है कि पितृपक्ष का समय केवल धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा प्रकट करने का अवसर है। इस पखवाड़े में किए गए कर्म हमारे पितरों को तृप्त करते हैं और उनका आशीर्वाद पूरे परिवार की प्रगति और सुख-समृद्धि का आधार बनता है। लेकिन इस काल में कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हें करना अत्यंत शुभ माना गया है और कुछ कार्य ऐसे हैं जिनसे बचना चाहिए। आज हम विस्तार से समझेंगे कि पितृपक्ष में हमें क्या करना चाहिए और किन बातों से परहेज़ करना चाहिए।”
पितृपक्ष में शुभ कार्य सामान्यतया रोक दिए जाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जीवन रुक जाएगा। मैं आपको विस्तार से बता देता हूँ कि इस समय कौन-कौन से कार्य करना अच्छे और उचित माने गए हैं:
पितृपक्ष में किए जा सकने वाले कार्यों मैं सबसे पहला कार्य श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान का है । इसमें
प्रतिदिन तिथि अनुसार पितरों का श्राद्ध करना, ब्राह्मण को भोजन कराना, जल तर्पण अर्थात सूर्योदय के समय जल में तिल और कुश डालकर अर्पण करना और  गया, प्रयाग, हरिद्वार, गंगासागर आदि पवित्र स्थलों पर जाकर पिंडदान करना है।
दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है दान-पुण्य और सेवा कार्य ।
इसके अंतर्गत अन्न, वस्त्र, दक्षिणा, छाता, जूते, तिल, गुड़, चावल, फल आदि का दान दिया जाता है इसके अलावा गौ सेवा गाय कोहरा चारा या
गौ सेवा ,गाय को हरा चारा या गुड़ खिलाना,
पक्षियों को दाना-पानी देना, गरीबों और असहायों की मदद करना शामिल है। ‌
तीसरा महत्वपूर्ण कार्य है भोजन से जुड़े कार्य
इसमें पितरों की तृप्ति हेतु खिचड़ी, कच्चा भोजन चावल-आटा-तिल-घी, और मौसमी फल दान करना आता है ।
ब्राह्मण या योग्य व्यक्ति को भोजन कराना तथा स्वयं भी घर में सात्विक भोजन करना, प्याज-लहसुन व मांसाहार से बचना चाहिए।
चौथे कार्य के रूप में आध्यात्मिक कार्यों मैं वृद्धि की जाती है।
गीता, गरुड़ पुराण, विष्णु सहस्रनाम, अथर्ववेद के पितृसूक्त का पाठ करना धार्मिक मत्रों का जाप और पितरों का स्मरण शामिल है।
प्रतिदिन के दैनिक और जरूरी कार्य लगातार करते रहना चाहिए।
जिसमें व्यापार का नियमित संचालन इसमें नया काम शुरू न करें, लेकिन पुराना काम चलता रहेगा  । वे सभी कार्य किए जाएंगे जिनका रोकना उचित नहीं होता है जैसे की पढ़ाई लिखाई इलाज दवाइयां हॉस्पिटल आदि से जुड़े कार्य ।
घर-परिवार से जुड़े कार्य लगातार करते रहना चाहिए जैसे की
घर की सफाई, मरम्मत, रंग-रोगन जैसे छोटे-मोटे काम।
पूर्वजों की तस्वीर या स्मृति स्थल पर दीपक जलाना।
घर में रोज़ सुबह-शाम धूप-दीप लगाना।
अब मैं आपको बताता हूं कि पितृपक्ष में किस तरह के कार्य नहीं करना चाहिए ।

1. नए कार्य और उत्सव जैसे विवाह, सगाई, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण, अन्नप्राशन जैसे संस्कार या उत्सव नहीं करने चाहिए।
नया मकान, जमीन, वाहन, गहने या बड़ी संपत्ति न खरीदें।
किसी नए व्यवसाय, नौकरी या प्रोजेक्ट की शुरुआत न करें।
इन कार्यों को न करने का मुख्य कारण यह है कि यह समय शुभ मांगलिक कार्य” का नहीं बल्कि “पितृ-तर्पण और आत्मचिंतन” का है।

2. धन-संपत्ति से जुड़े बड़े निर्णय इस समय में नहीं लेना चाहिए

नया निवेश, पार्टनरशिप, शेयर-मार्केट में बड़ा पैसा लगाना टालें । बकाया ऋण देना-लेना, बड़ी खरीदारी या अनुबंध करने से बचें। क्योंकि इसे अस्थिर और अशुभ परिणाम देने वाला माना जाता है।

3. मनोरंजन और भोग-विलास के कार्यों से पितृपक्ष में बचना चाहिए।

शादी-ब्याह के गाने, डांस, पार्टियाँ, मौज-मस्ती से बचें।
टीवी पर ऊँची आवाज़ के गाने-बजाने या तेज़ शोरगुल से बचें। क्योंकि यह काल श्रद्धा और शांति का है।

4. भोजन संबंधी सावधानियां बरतना चाहिए

मांसाहार, शराब, तंबाकू, नशा, प्याज और लहसुन का सेवन वर्जित है।
व्यर्थ खाना फेंकना या अपवित्र भोजन ग्रहण करना पितरों की तृप्ति में बाधा डालता है। क्योंकि सात्त्विक आहार से ही पितरों का आशीर्वाद सहज मिलता है।
माता-पिता, बुज़ुर्गों और ब्राह्मणों का अपमान  इस अवधि में भूलकर भी न करें।
झूठ बोलना, छल-कपट, झगड़ा-कलह से बचें।
असत्य या अशुद्ध कर्म करने से पितृ दोष और बढ़ता है। अगर ज़रूरी काम न हो तो पितृपक्ष में ऐशो-आराम या पर्यटन की यात्रा से बचें।
यदि यात्रा करनी ही पड़े तो पितरों को याद करके, तर्पण करके जाएँ।
इस समय पितरों का श्राद्ध, तर्पण या स्मरण बिल्कुल न करना  सबसे बड़ा दोष  है ।
जिनके पास सामर्थ्य न हो, वे केवल जल-तर्पण या तिल अर्पण करके भी कर्तव्य निभा सकते हैं।

संक्षेप में अगर मैं कहूं कि
पितृपक्ष में हमें नए काम, दिखावा, भोग-विलास और अपवित्र आचरण से दूर रहना चाहिए। इस काल को श्रद्धा, दान, सेवा और स्मरण में लगाना ही पितरों की तृप्ति और परिवार की उन्नति का मार्ग है।
अब मैं आपको पितृपक्ष में प्रतिदिन की जाने वाले काम की एक रूपरेखा बताता हूं ।
प्रातःकाल (सूर्योदय के समय
स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
तांबे/पीतल के पात्र में जल, तिल, कुश और सफेद फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें।
पितरों के नाम का स्मरण करके जल तर्पण करें (मन ही मन बोलें – “ॐ पितृभ्यः नमः”)।
पूर्वाह्न (सुबह 9–11 बजे) के बीच
पितरों की तस्वीर/स्थान पर दीपक जलाएँ, धूप अर्पित करें।
गीता, गरुड़ पुराण, विष्णु सहस्रनाम, या पितृ गायत्री मंत्र का पाठ करें।
संभव हो तो किसी गाय को हरा चारा, गुड़ या रोटी खिलाएँ।

मध्यान्ह (12–2 बजे)
तिथि अनुसार ब्राह्मण या किसी योग्य व्यक्ति को भोजन कराएँ।
यदि संभव न हो तो घर के आँगन या पीपल वृक्ष के नीचे पशु-पक्षियों के लिए अन्न रखें।

संध्या काल (शाम)

दीपक जलाएँ और पितरों का नाम लेकर आभार व्यक्त करें।
गरीब, असहाय, या ज़रूरतमंद को भोजन/वस्त्र का दान करें।
यदि संभव हो तो रोज़ थोड़ा-सा दूध, दही, तिल या चावल दान करें।
रात्रि परिवार संग सात्विक भोजन करें।
पितरों को स्मरण करते हुए…..

“ॐ पितृदेवाय नमः” का जाप करके सोएँ।

पितृपक्ष में पूरे पितृपक्ष भर मांसाहार, शराब, प्याज-लहसुन से परहेज़ करें।
दिखावा न करें, श्रद्धा और सादगी सबसे बड़ा नियम है।
पितृपक्ष में अगर आपसे कोई गलती हो जाए जैसे कि आप शराब  मांसाहार आदि कर लेते हैं तो इसके परिहार या प्रायश्चित  के नियम भी हैं।
इसके लिए

अगले दिन प्रातः स्नान करें  और तांबे/पीतल के पात्र में स्वच्छ जल, तिल, कुश डालकर सूर्य और पितरों को अर्पित करें। तथा 11 बार “ॐ पितृभ्यः नमः” जपें।

यह सबसे सरल और प्रभावी उपाय है।
भूल के प्रायश्चित हेतु दान बहुत प्रभावी माना गया है।
तिल, चावल, गुड़, सफेद वस्त्र, छाता, चप्पल, फल और अन्न का दान करें।
यदि सामर्थ्य न हो तो किसी गरीब को एक समय का भोजन करा दें

3. इसके अलावा  “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” का 108 बार जाप करें।

4. पितृ गायत्री मंत्र (ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः) का 11 या 21 बार जप करें।

इससे पितर क्षमा कर देते हैं।
प्रायश्चित के लिए ब्राह्मण या गौ सेवा का भी उपयोग किया जा सकता है । इसके लिए किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा दें या
गाय को हरा चारा, गुड़ या रोटी खिलाएँ।

 यह पितरों की तृप्ति का सर्वोत्तम उपाय माना गया है।
अंत में आपको चाहिए कि आप पितरों के समक्ष दीपक जलाकर मन ही मन कहें:
“हे पितृदेव! अज्ञानवश/मजबूरीवश मुझसे त्रुटि हुई है। कृपया इसे क्षमा करें और मुझ पर अपनी कृपा बनाए रखें।”

 संक्षेप में हम कह सकते हैं की
यदि पितृपक्ष में कोई चूक हो जाए तो जल-तर्पण + दान + मंत्रजप + क्षमा प्रार्थना ही पर्याप्त प्रायश्चित है। पितर अपने वंशजों की श्रद्धा देखते हैं, औपचारिकता नहीं।

अंत में मैं आप सभी से यह कहना चाहूंगा कि
पितृपक्ष हमें संदेश देता है कि हमारी जड़ें हमारे पितरों से जुड़ी हैं। उनकी स्मृति, सेवा और तर्पण से ही वंश आगे बढ़ता है और जीवन में स्थिरता आती है। इस समय किए गए सत्कार्य पितरों को तृप्त करके हमें दीर्घकालिक पुण्य और आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जबकि भूलवश किए गए निषिद्ध कर्म हमारे लिए रुकावट और अशांति का कारण बन सकते हैं। इसलिए श्रद्धा और अनुशासन के साथ पितृपक्ष का पालन करें, ताकि पितरों का आशीर्वाद सदा आप और आपके परिवार के साथ बना रहे।”

✍️पंडित अनिल कुमार पांडे 

वास्तु शास्त्री एवं प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ 

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मैं सूरज सेन पिछले 6 साल से पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूं और मैने अलग अलग न्यूज चैनल,ओर न्यूज पोर्टल में काम किया है। खबरों को सही और सरल शब्दों में आपसे साझा करना मेरी विशेषता है।
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