मालथौन (सागर)। विकास के दौर में जहां सरकारें गांव-गांव तक सुविधाएं पहुंचाने का दावा कर रही हैं, वहीं जनपद पंचायत मालथौन के अंतर्गत आने वाला ग्राम बेलाखेड़ी आज भी बदहाली की तस्वीर पेश कर रहा है। यह गांव ग्राम पंचायत पथरिया चिंताई से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, लेकिन सड़क सुविधा के अभाव में यहां के लोग आज भी आदम युग जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
बरसात में कीचड़ और गड्ढों में तब्दील होता रास्ता
गांव तक पहुंचने वाला रास्ता इतना खराब है कि बरसात के मौसम में यह कीचड़ और गड्ढों का दलदल बन जाता है। नतीजतन, गांव में न तो एंबुलेंस (108) पहुंच पाती है और न ही पुलिस वाहन (112)। किसी भी आपात स्थिति में ग्रामीणों को मरीजों को खाट, ठेला या बाइक पर लादकर मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है।
स्थानीय किसानों का कहना है कि गांव के करीब 80 प्रतिशत खेत इसी रास्ते से जुड़े हैं। फिलहाल सोयाबीन की फसल कटाई के लिए तैयार है, लेकिन दलदल भरे रास्तों में ट्रैक्टर और मजदूर फंस जाते हैं, जिससे फसल को नुकसान का खतरा बढ़ गया है। किसान चिंतित हैं कि अगर स्थिति जल्द नहीं सुधरी तो उन्हें भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।
बच्चों की पढ़ाई और दैनिक जीवन पर असर
सड़क की दुर्दशा का सबसे अधिक असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ रहा है। स्कूल जाने वाले बच्चों को रोजाना कीचड़ और फिसलन भरे रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है। कई बार बच्चे फिसलकर गिर चुके हैं और घायल भी हुए हैं। बरसात के दिनों में कई बच्चे स्कूल जाना ही छोड़ देते हैं क्योंकि रास्ता चलने लायक नहीं रहता।
ग्रामीणों के मुताबिक, चार महीने की बरसात के दौरान गांव तक कोई वाहन नहीं पहुंच पाता, जिससे स्वास्थ्य सेवाएं और जरूरी सामान की आपूर्ति पूरी तरह ठप हो जाती है।
प्रशासन की अनदेखी से बढ़ी नाराजगी
ग्रामवासियों ने बताया कि वे पिछले पांच वर्षों से जनपद पंचायत मालथौन से लेकर जिला प्रशासन तक इस समस्या की शिकायत कर चुके हैं। कई बार लिखित और मौखिक आवेदन देने के बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन की इस उदासीनता से गांव में पलायन की स्थिति बन रही है, क्योंकि लोग बुनियादी सुविधाओं के बिना जीवन जीने से तंग आ चुके हैं।
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि बेलाखेड़ी गांव तक जल्द से जल्द पक्की सड़क बनाई जाए, ताकि गांव भी विकास की मुख्यधारा से जुड़ सके और लोग सम्मानजनक जीवन जी सकें।
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