न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल, एसीबी ने क्लर्क को हिरासत में लेकर जांच तेज की
जब किसी को प्रशासन या पुलिस से न्याय नहीं मिलता, तो वह अदालत पर भरोसा करता है। लेकिन मुंबई के मझगांव सिविल सेशन कोर्ट से सामने आया मामला इस विश्वास को हिलाकर रख देता है। यहां एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पर गंभीर आरोप लगा है कि उन्होंने जमीन विवाद से जुड़े एक मुकदमे में अनुकूल फैसला सुनाने के बदले 25 लाख रुपये की रिश्वत मांगी।
एसीबी ने जाल बिछाकर जज के क्लर्क चंद्रकांत वासुदेव को रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया है। इसके बाद अब जज भी आरोपी के रूप में मामले में शामिल किए गए हैं।
एसीबी ने मांगी जज की गिरफ्तारी की अनुमति
एसीबी ने क्लर्क को विशेष न्यायालय में पेश किया, जहाँ से उसे 16 नवंबर तक हिरासत में भेज दिया गया है। जांच एजेंसी अब यह पता लगाने में जुटी है कि क्या यह रिश्वत की पहली घटना थी या पहले भी इसी तरह के सौदे किए गए थे।
एक वरिष्ठ एसीबी अधिकारी के अनुसार, “हमने प्रक्रिया के तहत अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को गिरफ्तार करने के लिए प्रधान न्यायाधीश से अनुमति मांगी है। अनुमति मिलते ही गिरफ्तारी और पूछताछ होगी।”
सातारा में भी सामने आया था ऐसा ही मामला
मुंबई का यह मामला कोई पहली घटना नहीं है। दिसंबर 2024 में सातारा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश धनंजय निकम पर भी धोखाधड़ी के एक केस में जमानत देने के बदले 5 लाख रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप लगा था।
एसीबी की प्रारंभिक जांच के बाद मामला बॉम्बे हाई कोर्ट तक पहुंचा। चूँकि हाई कोर्ट 10 करोड़ रुपये से कम मूल्य वाले मामलों की सुनवाई नहीं करता, इसलिए मार्च 2024 में यह केस एक वाणिज्यिक मुकदमे के रूप में मझगांव सिविल सेशन कोर्ट को सौंप दिया गया जहाँ अब नया रिश्वत प्रकरण उजागर हुआ है।
कैसे सामने आया रिश्वत मांगने का खेल
9 सितंबर को शिकायतकर्ता का एक सहकर्मी मझगांव स्थित सिविल कोर्ट की कोर्ट नंबर 14 में मौजूद था, जहाँ मामले की सुनवाई चल रही थी। उसी दौरान क्लर्क-सह-टाइपिस्ट चंद्रकांत वासुदेव ने शिकायतकर्ता के मोबाइल पर संपर्क किया और व्यक्तिगत मुलाकात की बात कही।
इसके बाद 12 सितंबर को चेंबूर के स्टारबक्स कैफे में दोनों की मुलाकात हुई। यहां वासुदेव ने दावा किया कि जज की ओर से फैसला उनके पक्ष में करवाने के लिए 25 लाख रुपये चुकाने होंगे जिसमें 10 लाख क्लर्क के लिए और 15 लाख जज के लिए बताए गए।
शिकायतकर्ता ने तुरंत रिश्वत देने से इनकार कर दिया। इसके बावजूद वासुदेव लगातार पैसे की मांग करता रहा और बार-बार फोन कर दबाव बनाता रहा।
पीड़ित ने रिश्वत से इनकार कर दी एसीबी में शिकायत
लगातार दबाव से परेशान होकर शिकायतकर्ता—जो खुद एक सरकारी कर्मचारी है—ने रिश्वत देने से साफ मना कर दिया और 10 नवंबर को वर्ली स्थित भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) कार्यालय पहुंचकर लिखित शिकायत दर्ज करा दी।
इसके बाद एसीबी ने योजना बनाकर वासुदेव को रंगेहाथ पकड़ा और अब मामले की परतें खुलने लगी हैं। जांच एजेंसी यह भी पता लगाने में जुटी है कि जज और क्लर्क ने इससे पहले कितने फैसलों को पैसों के आधार पर प्रभावित किया।








