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अगर पापा को साथ रहना है तो दें 1 करोड़ रुपये, सुप्रीम कोर्ट में बच्ची की मांग ने उड़ाए होश, CJI ने मां को लगाई फटकार

नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की एक ...

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नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की एक सुनवाई के दौरान ऐसा पल सामने आया जिसने वकीलों से लेकर न्यायाधीशों तक को हैरान कर दिया। एक 12 साल की बच्ची ने पिता के साथ रहने की शर्त में सीधे तौर पर 1 करोड़ रुपये की मांग कर डाली। इस अप्रत्याशित मांग ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन की खंडपीठ को भी चौंका दिया।

यह मामला एक दंपति के वैवाहिक विवाद से जुड़ा है, जिसमें बच्ची की कस्टडी को लेकर विवाद चल रहा है। पिता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया ने अदालत को बताया कि जिला अदालत पहले ही बच्ची की कस्टडी पिता को सौंप चुकी है, लेकिन मां ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है और अब तक बच्ची को पिता के हवाले नहीं किया गया।

सुप्रीम कोर्ट में बच्ची की चौंकाने वाली शर्त

बीते दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान बच्ची ने पिता से मिलने से इनकार कर दिया और कहा—”आप मेरी मां को परेशान कर रहे हैं, आपने उनके खिलाफ कोर्ट केस किया है, अगर आपको मुझे साथ रखना है तो पहले 1 करोड़ रुपये दीजिए।” यह सुनकर अदालत में मौजूद सभी लोग अवाक रह गए।

CJI ने मां को फटकारा : बच्ची के भविष्य से मत खेलिए

बच्ची की इस बात पर CJI बीआर गवई ने सख्त प्रतिक्रिया दी। उन्होंने मां को स्पष्ट शब्दों में फटकार लगाई और कहा कि इस तरह की बातें बच्ची के दिमाग में भरकर उसका मानसिक विकास बिगाड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोर्ट नहीं चाहता कि बच्ची पैसों के लालच में या किसी दबाव में रिश्तों को समझे। कोर्ट का उद्देश्य है कि बच्ची समझदारी और मानसिक संतुलन के साथ निर्णय ले।

पिता का पक्ष: मां ने स्कूल से भी मेरा नाम हटा दिया

पिता के वकील पटवालिया ने बताया कि बच्ची अब पिता के साथ जाने को तैयार नहीं है और मां के कहने पर अड़ गई है। उन्होंने यह भी बताया कि स्कूल के दस्तावेजों से भी मां ने पिता का नाम हटवा दिया है। उन्होंने कहा कि मां को सजा देने से शायद कोई हल न निकले, इसलिए वे इस मामले में मध्यस्थता चाहते हैं।

मां का पक्ष: “हम मध्यस्थता को तैयार हैं”

बच्ची की मां की वकील, अधिवक्ता अनुभा अग्रवाल ने अदालत को बताया कि उनकी मुवक्किल मध्यस्थता के लिए तैयार है। इस पर CJI ने एक बार फिर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि “आप अपनी बेटी को बेवजह इस विवाद में खींच रही हैं, उसके करियर और मानसिक स्थिति को नुकसान पहुंचा रही हैं।” उन्होंने चेताया कि आज जो बोया जा रहा है, उसका नतीजा भविष्य में भुगतना पड़ सकता है।

अदालत का फैसला: मामला मध्यस्थता को सौंपा गया

दोनों पक्षों की सहमति के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि मामला एक मध्यस्थ को सौंपा जाएगा, जिससे आपसी सहमति से समाधान निकाला जा सके। कोर्ट ने साफ किया कि यह केवल एक कस्टडी का मामला नहीं, बल्कि एक बच्ची के भविष्य का सवाल है

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हमारे बारे में योगेश दत्त तिवारी पिछले 20 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं और मीडिया की दुनिया में एक विश्वसनीय और सशक्त आवाज के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। अपने समर्पण, निष्पक्षता और जनहित के प्रति प्रतिबद्धता के चलते उन्होंने पत्रकारिता में एक मजबूत स्थान बनाया है। पिछले 15 वर्षों से वे प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र 'देशबंधु' में संपादक के रूप में कार्यरत हैं। इस भूमिका में रहते हुए उन्होंने समाज के ज्वलंत मुद्दों को प्रमुखता से उठाया है और पत्रकारिता के उच्चतम मानकों को बनाए रखा है। उनकी लेखनी न सिर्फ तथ्यपरक होती है, बल्कि सामाजिक चेतना को भी जागृत करती है। योगेश दत्त तिवारी का उद्देश्य सच्ची, निष्पक्ष और जनहितकारी पत्रकारिता को बढ़ावा देना है। उन्होंने हमेशा युवाओं को जिम्मेदार पत्रकारिता के लिए प्रेरित किया है और पत्रकारिता को सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि समाज सेवा का माध्यम माना है। उनकी संपादकीय दृष्टि, विश्लेषणात्मक क्षमता और निर्भीक पत्रकारिता समाज के लिए प्रेरणास्रोत रही है।
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