आँवला_नवमी”अक्षय (आंवला) नवमी आज
सरत्नगर्भकुष्मांडादिदानम्!!
कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी ‘अक्षय नवमी’ कहलाती है । इसे धात्री_नवमी_कूष्मांड_नवमी_भी_बोलते_हैं । इस दिन किया हुआ स्नान, जप, दान, मौन, सद्गुरु-सान्निध्य, सेवा बड़ा दिव्य, अक्षय फल देते हैं ।
आँवला नवमी के दिन आँवले के वृक्ष का पूजन, सत्कार, उसकी प्रदक्षिणा और आँवले का सेवन बहुत हितकारी है ।
आँवले के वृक्ष का पूजन करते समय ‘ धात्र्यै नमः ।’ मंत्र का जप सिद्धिदायक कहा गया है ।
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी बहुत खास और शुभ मानी जाती है। इस दिन उत्तर भारत और मध्य भारत में अक्षय नवमी या आँवला नवमी का पर्व मनाया जाता है। जबकि दक्षिण और पूर्व भारत में इसी दिन जगद्धात्री पूजा का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन अच्छे कार्य करने से अगले कई जन्मों तक हमें इसका पुण्य फल मिलता रहेगा। धर्म ग्रंथो के अनुसार आँवला नवमी के दिन आँवले के पेड़ पर भगवान विष्णु एवं शिव जी वास करते हैं। इसलिए इस दिन सुबह उठकर इस वृक्ष की सफाई करनी चाहिए। साथ ही इस पर दूध एवं फल चढ़ाना चाहिए। पुष्प अर्पित करने चाहिए और धूप-दीप दिखाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार आँवला नवमी या अक्षय नवमी उतनी ही शुभ और फलदायी है जीतनी की वैशाख मास की अक्षय तृतीया।
आँवला नवमी कथा–
किसी समय काशी नगरी में एक व्यापारी और उसकी पत्नी रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। इसी कारण व्यापारी की पत्नी हमेशा दु:खी रहती थी। एक दिन उसे किसी ने कहा कि यदि वह संतान चाहती है तो उसे किसी जीवित बच्चे की बलि भैरव को चढ़ाना होगी। उसने यह बात अपने पति से कही, लेकिन पति को यह बात जरा भी पसन्द नहीं आई।
चूंकि उसकी पत्नी को संतान की बहुत अधिक लालसा थी, इसलिए उसने पति से छुपाकर और अच्छे-बुरे की परवाह किए बिना एक बच्चा चुराकर उसकी बलि भैरव बाबा को दे दी। इसका गंभीर परिणाम हुआ और व्यापारी की पत्नी को कई रोग हो गए। पत्नी की यह हालत देख व्यापारी दु:खी था। उसने इसका कारण पूछा तो पत्नी ने बताया कि बच्चे की बलि के कारण उसकी यह हालत हुए है। यह सुनकर व्यापारी को बहुत क्रोध आया, लेकिन पत्नी की हालत से वह दु:खी था। इसलिए उसने उपाय बताया कि वह इस पाप से मुक्ति के लिए गंगा स्नान करे और सच्चे मन से ईश्वर से प्रार्थना करे। व्यापारी की पत्नी ने कई दिनों तक यह किया।
इससे प्रसन्न होकर गंगा माता ने एक बूढ़ी औरत के रूप में व्यापारी की पत्नी को दर्शन दिए और कहा कि उसके शरीर के सारे रोग दूर हो जाएंगे, यदि वह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन वृंदावन में व्रत रखकर आँवले के वृक्ष की पूजा करे। व्यापारी की पत्नी ने बड़े विधि-विधान से आँवला नवमी का व्रत-पूजन किया। इससे शीघ्र ही उसके सभी कष्ट दूर हो गए और उसे एक स्वस्थ व सुन्दर संतान की प्राप्ति हुई। इसी दिन से महिलायें सुख-सौभाग्य, रोग मुक्ति और उत्तम संतानसुख की प्राप्ति के लिए आँवला नवमी का व्रत करीं हैं
पूजन सामग्री
आँवले का पौधा, फल, तुलसी के पत्ते एवं तुलसी का पौधा, कलश और जल, कुमकुम, सिंदूर, हल्दी, अबीर-गुलाल, चावल, नारियल, सूत, धूप-दीप, श्रृंगार का सामान और साड़ी-ब्लाउज, दान के लिए अनाज।
डॉ अनिल दुबे वैदिक देवरी बिछुआ 9936443138








