सागर। शहर की सुबह शनिवार को एक ऐसी खबर लेकर आई जिसने हर किसी का दिल दहला दिया। मोतीनगर चौराहा स्थित पब्लिक टॉयलेट से एक नवजात शिशु का शव बरामद हुआ। मासूम का निर्जीव शरीर देखकर वहां मौजूद हर शख्स की आंखें भर आईं। जिस बच्चे ने अभी इस दुनिया की पहली किलकारी तक नहीं भरी थी, उसे इस बेरहमी से छोड़ दिया गया कि मानो उसकी जिंदगी की कोई कीमत ही नहीं थी।
सुबह-सुबह गूंजा मातम
सुबह करीब 5 बजे स्थानीय लोगों ने पब्लिक टॉयलेट के भीतर नवजात शिशु का शव पड़ा देखा। यह दृश्य देखकर लोग सन्न रह गए। तुरंत पुलिस को सूचना दी गई। मोतीनगर थाना प्रभारी जसवंत सिंह राजपूत अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया और आसपास पूछताछ शुरू की।
इंसानियत पर बड़ा सवाल
नवजात शिशु का शव जिस हालत में मिला, उसने हर किसी के दिल को चीर दिया। लोग एक-दूसरे से यही पूछते रहे “क्या कसूर था इस मासूम का? क्यों उसे जन्म लेते ही मौत की गोद में सुला दिया गया?” घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। जहां मां की गोद किसी बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती है, वहीं इस मासूम को जीवन की पहली सांसें लेने से पहले ही कूड़े की तरह छोड़ दिया गया।
पुलिस जुटी जांच में
थाना प्रभारी जसवंत सिंह राजपूत ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है। आसपास लगे CCTV कैमरों की मदद से यह पता लगाने की कोशिश की जाएगी कि आखिर किसने बच्चे को यहां छोड़ा। पुलिस ने आसपास के लोगों से भी पूछताछ शुरू कर दी है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह घटना मजबूरी का नतीजा है या फिर किसी की क्रूरता।
समाज पर भी उठे सवाल
यह घटना सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए सोचने का विषय है। क्या हमारी संवेदनाएं इतनी मर चुकी हैं कि एक नवजात को इस तरह मौत के हवाले कर दिया गया? लोगों का कहना है कि अगर किसी मां-बाप की मजबूरी थी तो कम से कम बच्चे को किसी सुरक्षित हाथों में सौंपा जा सकता था, लेकिन ऐसा न करके मासूम की जिंदगी छीन लेना न केवल अपराध है बल्कि इंसानियत पर भी धब्बा है।
लोगों की आंखें हुईं नम
घटना की खबर फैलते ही आसपास का माहौल गमगीन हो गया। टॉयलेट के बाहर खड़े लोगों की आंखें नम थीं। किसी ने मासूम के लिए दुआ की, तो कोई रोते हुए यही कह रहा था “मां… मेरा क्या कसूर था, जो तूने मुझे इस हाल में छोड़ दिया ?”
यह घटना सागर ही नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए आईना है। सवाल यह है कि आखिर कब तक मासूम जिंदगियां इसी तरह लावारिस मिलती रहेंगी और कब तक इंसानियत ऐसे मामलों में शर्मसार होती रहेगी ?