सागर में ईद-उल-अजहा सादगी और श्रद्धा के साथ मनाई गई, सड़कों तक उमड़े नमाजी
सागर। शहर सागर में शनिवार को ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार सादगी, श्रद्धा और भाईचारे के साथ मनाया गया। मुस्लिम समाज के सैकड़ों लोग सुबह-सवेरे ही ईदगाह मैदान और विभिन्न मस्जिदों में पहुंचे, जहां उन्होंने विशेष नमाज अदा की और देश की खुशहाली, अमन और शांति की दुआ मांगी।
ईदगाह के भीतर और बाहर तक बिछे नमाजियों के सफ—
ईदगाह मैदान, जो सागर के मोतीनगर चौराहे के पास भोपाल रोड पर स्थित है, वहां सुबह से ही भारी भीड़ उमड़ पड़ी। नमाजियों की इतनी अधिक संख्या रही कि ईदगाह मैदान छोटा पड़ गया। इसके बाद बड़ी संख्या में लोगों ने भोपाल रोड की सड़कों पर बैठकर नमाज अदा की। नमाज के दौरान क्षेत्र पूरी तरह आस्था और भाईचारे की भावना से सराबोर नजर आया।
गले मिलकर दी ईद की मुबारकबाद
नमाज के बाद ईदगाह और मस्जिदों के बाहर गले मिलकर एक-दूसरे को बकरीद की मुबारकबाद देने का सिलसिला चला। हर ओर खुशी और सौहार्द का माहौल नजर आया। छोटे-बड़े सभी लोगों के चेहरों पर मुस्कान और आंखों में एक नई उम्मीद दिखाई दी।
प्रशासन रहा सतर्क, शांति व्यवस्था चाक-चौबंद
त्योहार को शांतिपूर्वक संपन्न कराने के लिए जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन भी पूरी तरह मुस्तैद रहा। हर संवेदनशील स्थान पर पुलिस बल की तैनाती की गई थी। अधिकारी लगातार भ्रमण करते रहे और हर गतिविधि पर नजर बनाए रहे। इस दौरान कहीं से भी किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं आई।
ईद-उल-अजहा: कुर्बानी की मिसाल, आस्था और समर्पण का पर्व
ईद-उल-अजहा, जिसे आमतौर पर बकरीद कहा जाता है, इस्लामी कैलेंडर के अंतिम महीने ‘जिलहिज्जा’ की 10 तारीख को मनाया जाता है। यह त्योहार त्याग, समर्पण और आस्था की पराकाष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने आदेश दिया कि वे अपने सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी दें। उन्होंने अपने बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम को कुर्बान करने का संकल्प लिया। जब वे अपने पुत्र को कुर्बान करने चले, तभी अल्लाह ने उनकी परीक्षा को सफल मानते हुए हजरत इस्माइल को जीवनदान दे दिया और उनकी जगह एक दुम्बा (भेड़) कुर्बानी के लिए भेजा।
इस घटना की याद में आज भी ईद-उल-अजहा पर कुर्बानी दी जाती है और अल्लाह की राह में त्याग का संदेश दिया जाता है।
भाईचारे और सौहार्द का संदेश
इस पर्व का मूल उद्देश्य है— त्याग, सेवा, मानवता और समाज में शांति व भाईचारा कायम रखना। सागर में इस बार भी बकरीद ने यही संदेश दोहराया कि धर्म का असली स्वरूप इंसानियत है और आपसी मोहब्बत ही सबसे बड़ी इबादत।