सागर। सागर जिले के बीना थाना क्षेत्र के बारदा गांव में अवैध क्रेशर से करंट लगने के मामले ने अब तूल पकड़ लिया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस घटना पर सख्त रुख अपनाते हुए सागर कलेक्टर संदीप जी.आर. और एसपी को ‘घोर लापरवाह’ करार दिया है। आयोग ने इस संबंध में मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन को नोटिस जारी कर कड़ा रुख दिखाया है।
बच्चे की जान पर बना संकट
यह मामला 1 जनवरी 2025 का है, जब 14 वर्षीय बालक मानस शुक्ला अवैध क्रेशर प्लांट के पास से गुजर रहा था। प्लांट के लिए खींची गई हाईटेंशन लाइन में खुले तार पड़े थे, जिनकी चपेट में आने से मासूम गंभीर रूप से झुलस गया। हादसे में उसकी हालत इतनी नाज़ुक हो गई कि हाथ कटवाने तक की नौबत आ गई। परिजनों ने तुरंत उसे बीना अस्पताल पहुंचाया, जहां से पुलिस को सूचना दी गई, लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि न तो एफआईआर दर्ज की गई और न ही किसी प्रकार की त्वरित कार्रवाई हुई।
पूर्व मंत्री के रिश्तेदार पर आरोप
स्थानीय लोगों और पीड़ित परिवार का आरोप है कि जिस क्रेशर से यह हादसा हुआ, वह पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह के भतीजे लखन सिंह ठाकुर का है। परिवार ने यह भी दावा किया कि लखन सिंह द्वारा अवैध खनन कराया जा रहा था और इसके लिए ही यह बिजली लाइन डाली गई थी। आरोप यह भी है कि भूपेंद्र सिंह ने अपने प्रभाव के चलते पूरे मामले को दबाने की कोशिश की।
परिजनों को धमकी और डराने की कोशिश
मानस शुक्ला के पिता राकेश शुक्ला ने आयोग को दी शिकायत में बताया कि हादसे के बाद प्रशासन की बजाय उनके परिवार को ही धमकियां दी गईं। उनसे कहा गया कि यदि ज्यादा शिकायतें की गईं तो उल्टा उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी जाएगी। यहां तक कि जान से मारने की चेतावनी भी दी गई।
आयोग का सख्त रुख
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जांच में पाया कि पुलिस और प्रशासन ने पांच महीने तक मामले को टालते हुए कोई एफआईआर दर्ज नहीं की। आयोग ने इसे कानून और प्रशासनिक जिम्मेदारी की गंभीर चूक करार दिया। आयोग ने मुख्य सचिव को नोटिस में साफ शब्दों में कहा है कि –
मानस शुक्ला के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा क्यों न दिया जाए।
सागर कलेक्टर पर कार्रवाई की अनुशंसा भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DOPT) को क्यों न की जाए।
अवैध क्रेशर के मालिक के खिलाफ अब तक कोई वैधानिक दंडात्मक कार्रवाई क्यों नहीं हुई।
23 अगस्त तक जवाब तलब
आयोग ने 9 अगस्त को राज्य सरकार को नोटिस भेजकर 23 अगस्त तक पूरे मामले पर विस्तृत जवाब मांगा है। साथ ही डीजीपी को एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं। आयोग का कहना है कि घटना स्थल का तत्काल निरीक्षण नहीं किया गया, जिससे साक्ष्यों को संरक्षित करने और भविष्य में ऐसे हादसे रोकने के उपाय करने का मौका गंवा दिया गया।
लापरवाही का ठीकरा प्रशासन पर
आयोग ने इस पूरे मामले में सबसे अधिक जिम्मेदारी सागर कलेक्टर की मानी है। आयोग का कहना है कि कलेक्टर और एसपी दोनों ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया और इससे यह गंभीर हादसा और भी दुखद रूप ले लिया। आयोग ने राज्य सरकार से स्पष्ट पूछा है कि आखिर इतने बड़े मामले में कार्रवाई क्यों नहीं हुई और दोषियों को बचाने की कोशिश क्यों की गई।
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