पति पर अफेयर का है शक, हाइकोर्ट का यह फैसला पत्नी को कॉल और लोकेशन डिटेल्स पाने का दिलाएगा हक
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाया है, जो वैवाहिक विवादों के मामलों में नया दृष्टिकोण पेश करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी पत्नी को अपने पति पर विवाहेतर संबंध का संदेह है, तो वह पति और उसकी कथित साथी के कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (CDR) और लोकेशन जानकारी हासिल करने का अधिकार रखती है।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने यह आदेश उस समय दिया, जब पति और उसकी कथित प्रेमिका ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील की थी।
फैमिली कोर्ट का फैसला और पृष्ठभूमि
यह मामला एक ऐसे दंपति से जुड़ा है जिनकी शादी 2002 में हुई थी और उनके दो बच्चे हैं। पत्नी ने 2023 में तलाक की अर्जी दायर की थी, जिसमें उसने पति पर विवाहेतर संबंध और मानसिक क्रूरता का आरोप लगाया। उसका दावा था कि पति और उसकी कथित प्रेमिका अक्सर साथ यात्रा करते थे और लंबे समय से एक-दूसरे के संपर्क में थे।
पत्नी ने अदालत से मांग की कि पति और उसकी साथी के कॉल रिकॉर्ड्स व लोकेशन डिटेल्स को सुरक्षित रखा जाए ताकि संबंधों की सच्चाई सामने लाई जा सके। इस आधार पर फैमिली कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को पुलिस और टेलीकॉम कंपनियों को निर्देश दिया कि वे जनवरी 2020 से अब तक का संबंधित डेटा संरक्षित रखें।
पति और कथित प्रेमिका की आपत्ति
पति और उसकी कथित प्रेमिका ने इस आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि यह उनके निजता के अधिकार का हनन है। उनका कहना था कि पत्नी के पास विवाहेतर संबंध का कोई ठोस सबूत नहीं है और केवल कॉल डिटेल या मोबाइल टावर की निकटता से किसी संबंध की पुष्टि नहीं की जा सकती। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी का उद्देश्य उन्हें बदनाम करना और मानसिक रूप से परेशान करना है।
हाईकोर्ट की दलील
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखते हुए कहा कि कॉल रिकॉर्ड्स और लोकेशन डेटा वस्तुनिष्ठ (ऑब्जेक्टिव) प्रमाण होते हैं। अदालत ने 2003 के सुप्रीम कोर्ट के शारदा बनाम धर्मपाल मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि निजी गोपनीयता में सीमित हस्तक्षेप तब स्वीकार्य है जब न्याय और सत्य की खोज आवश्यक हो।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि CDR और टॉवर लोकेशन से केवल तथ्य सामने आते हैं, यह किसी की निजी बातचीत की सामग्री को उजागर नहीं करते। इस तरह यह सबूत व्यक्तिगत जीवन में अनावश्यक दखल दिए बिना न्यायिक प्रक्रिया को सहारा दे सकते हैं।
कानूनी और सामाजिक महत्व
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला विवाह संबंधी विवादों में पारदर्शिता और तथ्यात्मक प्रमाण जुटाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि केवल आरोपों या अटकलों के आधार पर किसी को दोषी न ठहराया जाए, बल्कि ठोस डिजिटल डेटा के आधार पर निष्पक्ष जांच हो।
दिल्ली हाईकोर्ट का यह आदेश स्पष्ट करता है कि पारिवारिक विवादों में न्यायालय न तो केवल आरोपों पर भरोसा करेगा और न ही बिना सबूत के किसी की प्रतिष्ठा को आंच आने देगा। यह निर्णय व्यक्तिगत गोपनीयता और न्यायिक पारदर्शिता, दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास है।