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शिवभक्ति की अद्भुत गाथा: नागपंचमी पर खुलता है दुनिया का अनोखा मंदिर, जहां विष्णु नहीं शिव विराजते हैं सर्प शैय्या पर……

शिवभक्ति की अद्भुत गाथा: नागपंचमी ...

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शिवभक्ति की अद्भुत गाथा: नागपंचमी पर खुलता है दुनिया का अनोखा मंदिर, जहां विष्णु नहीं शिव विराजते हैं सर्प शैय्या पर……

उज्जैन की तंग गलियों से होते हुए जब आप महाकालेश्वर मंदिर की ऊंचाइयों की ओर बढ़ते हैं, तो एक रहस्यपूर्ण द्वार पर आकर कदम ठिठक जाते हैं। यह कोई आम द्वार नहीं यह श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर का प्रवेश है, जो साल में केवल एक दिन खुलता है। इस दिन को हिंदू पंचांग में श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी, यानी नागपंचमी कहते हैं।

यह सिर्फ मंदिर नहीं, बल्कि सर्पों और शिव के बीच अनंत भक्ति और अमरत्व की कहानी है। मान्यता है कि यहां साक्षात सर्पराज तक्षक वास करते हैं। और यही वजह है कि बाकी पूरे वर्ष यह मंदिर बंद रहता है—ताकि प्रभु और उनके प्रिय नागराज के एकांत में कोई विघ्न न आए।

जब शिव विष्णु की जगह ले लें…

श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर की सबसे अद्भुत बात यह है कि यहां आपको भगवान विष्णु नहीं, बल्कि भगवान शिव सर्प शैय्या पर विराजमान दिखते हैं। पूरी दुनिया में यह एकमात्र मंदिर है, जहां शिव इस रूप में स्थापित हैं।

11वीं सदी की यह मूर्ति एक ही शिला पर उकेरी गई है। कहा जाता है कि इसे नेपाल से लाया गया था। शिव-पार्वती, उनके साथ बाल गणेश, और उनके नीचे सर्पराज तक्षक की दशमुखी सर्प शैय्या—यह दृश्य किसी दिव्य स्वप्न जैसा लगता है। मूर्ति इतनी कलात्मक है कि शिव के गले और भुजाओं में लिपटे सर्प भी मानो जीवंत प्रतीत होते हैं।

पौराणिक कथा: तक्षक की तपस्या और शिव का वरदान

प्राचीन मान्यता के अनुसार, सर्पों के राजा तक्षक ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया और उन्हें अपने साथ रहने का अवसर भी प्रदान किया।

परंतु तक्षक की एक शर्त थी—वह एकांत चाहते थे, जिसमें कोई विघ्न न डाले। इसलिए यह परंपरा शुरू हुई कि साल में केवल नागपंचमी के दिन ही मंदिर खोला जाएगा, और बाकी समय यह बंद रहेगा।

कहा जाता है कि नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन से सर्प दोष, कालसर्प योग जैसे कई दोष समाप्त हो जाते हैं। इसी कारण इस दिन हजारों-लाखों श्रद्धालु उज्जैन में जुटते हैं।

कथा: जब देवताओं को भी नहीं मिला उतरने का स्थान

एक पौराणिक कथा और भी है। देवर्षि नारद एक बार इंद्र की सभा में कथा सुना रहे थे। इंद्र ने पृथ्वी पर ऐसा स्थान पूछा जो मोक्षदायक हो। नारद ने कहा प्रयागराज से भी दस गुना पुण्य देने वाला है महाकाल वन।

सभी देवता अपने विमानों से वहां पहुँचे, लेकिन भूमि पर उतरने का स्थान ही नहीं था—चारों ओर शिवलिंगों की अपार संख्या थी। यह देखकर देवता उलझन में पड़े। तभी उन्होंने देखा कि एक तेजस्वी नागचंद्रगण स्वर्ग की ओर जा रहा है। पूछने पर उसने बताया कि वह महाकाल वन में ईशानेश्वर लिंग की पूजा कर रहा था।

देवताओं ने उसी से निर्माल्य लंघन दोष का निवारण जाना और उस लिंग को नागचंद्रेश्वर नाम दिया। यही लिंग आगे चलकर इस अद्वितीय मंदिर का केंद्र बना।

इतिहास में दर्ज निर्माण की कथा

ऐसा माना जाता है कि परमार वंश के राजा बोझराज ने 1050 ईस्वी के आसपास इस मंदिर का निर्माण करवाया। बाद में राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकालेश्वर मंदिर के साथ इसका भी जीर्णोद्धार करवाया।

आज, यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इतिहास, कला और अध्यात्म का भी अनमोल संगम है।

इस वर्ष के विशेष दर्शन: 28-29 जुलाई 2025

इस वर्ष नागपंचमी 29 जुलाई को है। लेकिन भक्तों की श्रद्धा और भीड़ को देखते हुए मंदिर के पट 28 जुलाई की मध्य रात्रि 12 बजे ही खोल दिए जाएंगे। अगले दिन रात 12 बजे आरती के बाद पट पुनः बंद कर दिए जाएंगे।

पूरे आयोजन की जिम्मेदारी महानिर्वाणी अखाड़े के संतों द्वारा निभाई जाती है।

एक बार के दर्शन, जीवन भर का पुण्य

श्रद्धालु मानते हैं कि एक बार इस मंदिर के दर्शन कर लेने से जीवन के सारे सर्पदोष समाप्त हो जाते हैं, और आत्मा को शांति प्राप्त होती है। यही कारण है कि हर वर्ष नागपंचमी पर लाखों लोग उज्जैन की ओर कूच करते हैं। एक झलक पाने, उस दिव्य ऊर्जा को महसूस करने, और जीवन को सर्पदोषों से मुक्त करने।

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मैं सूरज सेन पिछले 6 साल से पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूं और मैने अलग अलग न्यूज चैनल,ओर न्यूज पोर्टल में काम किया है। खबरों को सही और सरल शब्दों में आपसे साझा करना मेरी विशेषता है।
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