भोपाल। गर्मियों की एक शांत रात थी। घर के सभी लोग खुले आंगन में जमीन पर बिस्तर बिछाकर सोए हुए थे। उन्हीं के बीच 5 साल का एक नन्हा बच्चा भी गहरी नींद में था। किसी को भनक तक नहीं थी कि एक खतरनाक खतरा उनके बेहद करीब पहुंच चुका है।
रात के सन्नाटे को अचानक एक दर्दनाक चीख ने चीर दिया। सब घबरा कर उठे और देखा कि उनका लाड़ला बच्चा तड़प रहा था। पास जाकर देखा तो सभी के होश उड़ गए एक लंबा, करीब 6 फीट का कोबरा बच्चे को डस चुका था।
जिंदगी और मौत की लड़ाई शुरू हुई
परिजनों ने समय बर्बाद किए बिना तुरंत बच्चे को उठाया और सीधे रायसेन जिला अस्पताल की ओर भागे। डॉक्टरों ने फुर्ती दिखाई और तुरंत 10 वॉयल एंटी-स्नेक वेनम इंजेक्शन लगाए। इससे ज़हर का असर थोड़ा कम हुआ, लेकिन हालत अब भी नाजुक थी। बच्चा लगातार बेहोशी की ओर बढ़ रहा था, इसलिए उसे तत्काल भोपाल के हमीदिया अस्पताल रेफर कर दिया गया।
जब हमीदिया पहुँचा, तब तक शरीर नीला पड़ चुका था
सुबह करीब 5 बजे जब वह भोपाल की हमीदिया अस्पताल की इमरजेंसी यूनिट में लाया गया, तब तक जहर पूरे शरीर में फैल चुका था। उसका शरीर नीला पड़ने लगा था, सांसें धीमी हो गई थीं और आंखें लगभग बंद थीं। डॉक्टरों की टीम ने देर न करते हुए तुरंत इलाज शुरू किया।
7 घंटे की जद्दोजहद और 30 वॉयल एंटी-वेनम इंजेक्शन
पीडियाट्रिक विभाग की विशेषज्ञ टीम ने करीब 7 घंटे तक लगातार बच्चे की जान बचाने की कोशिश की। इलाज के दौरान उसे 30 वॉयल एंटी-वेनम, कई तरह की एंटीबायोटिक दवाएं, फ्लूइड्स और अन्य जरूरी मेडिकेशन दिए गए।
5 दिन वेंटिलेटर पर टिकी रही मासूम की साँसे
अगले पांच दिन बेहद नाजुक रहे। बच्चा वेंटिलेटर पर था और हर पल की चिंता परिवार और डॉक्टरों को घेरे हुए थी। चौथे दिन जब उसने हल्का तरल आहार लेना शुरू किया, तो सबने राहत की सांस ली। गुरुवार को उसने सामान्य भोजन भी लेना शुरू कर दिया, जिससे यह साफ हो गया कि खतरा अब टल चुका है।
समय पर लिया फैसला बना जीवन रक्षक
पीडियाट्रिक विभाग की प्रमुख डॉक्टर मंजूषा गोयल ने बताया कि बच्चे को बचा पाने का सबसे बड़ा कारण यह रहा कि परिवार ने झाड़-फूंक या देसी इलाज का सहारा लेने के बजाय सीधे अस्पताल का रुख किया। अगर इलाज में थोड़ी भी देर होती, तो बच्चा शायद बच नहीं पाता।