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स्कूल खुलते देर से, बंद होते पहले ! मालथौन ब्लॉक की शिक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल, गंदगी और लापरवाही ने किया हाल बेहाल

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स्कूल खुलते देर से, बंद होते पहले ! मालथौन ब्लॉक की शिक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल, गंदगी और लापरवाही ने किया हाल बेहाल

सागर। मालथौन ब्लॉक में शासकीय स्कूलों की हालत इन दिनों बेहद चिंताजनक बनी हुई है। जहां शासन शिक्षा के स्तर को सुधारने की बात कर रहा है, वहीं ज़मीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर पेश कर रही है। यहां स्कूलों के खुलने और बंद होने का समय सरकारी नियमों के मुताबिक नहीं, बल्कि बसों के आने-जाने के समय से तय होता दिख रहा है।

दरअसल, मालथौन से सागर के बीच चलने वाली यात्री बसें ही स्कूल स्टाफ की टाइमिंग तय कर रही हैं। कई शिक्षक रोजाना इन्हीं बसों से सागर से आना-जाना करते हैं, जिसके चलते स्कूल समय से पहले ही बंद कर दिए जाते हैं। इसका ताज़ा उदाहरण झीकनी और पाली गांव के शासकीय स्कूलों में देखने को मिला, जहां शाम करीब 4:15 बजे छात्र-छात्राएं स्कूल से निकलते देखे गए। वहीं शासकीय माध्यमिक शाला पाली में तो 4:20 पर ताले लटकते मिले।

स्कूल खुलते देर से, बंद होते पहले


पाली स्कूल के एकमात्र उपस्थित शिक्षक बाबूलाल अहिरवार ने जानकारी दी कि बाकी शिक्षक – मीना जैन, शाहीन ऐजाद, श्वेता जैन और अजय सेन – पहले ही निकल चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यहां स्कूल नियमित रूप से 4 बजे के आसपास बंद हो जाता है, जबकि शासकीय आदेश के अनुसार अंतिम समय 4:30 बजे निर्धारित है।

कागज़ों में टॉप, हकीकत में ढीली पढ़ाई

इन स्कूलों के रिजल्ट्स भले ही 100 प्रतिशत बताए जा रहे हों, लेकिन छात्र-छात्राओं की शैक्षणिक गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार कई बच्चे ऐसे हैं जिन्हें अपना नाम तक ठीक से लिखना नहीं आता, फिर भी वे प्राथमिक से मिडिल स्कूल तक पहुंच चुके हैं। परीक्षा के समय एक ही स्टाफ होने की वजह से छात्रों को खुलकर मदद मिलती है, जिससे नतीजे तो अच्छे दिखते हैं, लेकिन वास्तविक ज्ञान कहीं पीछे छूट गया है।

गंदगी के बीच पढ़ाई, टूटी खिड़कियां और जानवरों का जमावड़ा

शासकीय माध्यमिक शाला झीकनी में हालात बद से बदतर हैं। कक्षाओं के सामने इतनी गंदगी फैली हुई है कि आम आदमी वहां कुछ मिनट भी न टिके, मगर छात्र-छात्राओं को उसी माहौल में पढ़ाई करनी पड़ रही है। बरामदे में जानवरों का गोबर तक फैला हुआ मिला और खिड़कियों की हालत भी जर्जर है – कई पल्ले टूटे हैं और कुछ जगहों पर टीन की चादरें टांकी गई हैं।

शाला विकास निधि का क्या हुआ ?

ग्रामीणों का सवाल है कि जब सरकार हर साल शाला विकास के लिए लाखों रुपये भेजती है तो फिर स्कूलों की हालत सुधर क्यों नहीं रही? टूटी खिड़कियों की मरम्मत तक नहीं कराई गई, जानवर खुलेआम बरामदे में घूमते हैं और शिक्षा पूरी तरह उपेक्षा की शिकार हो गई है।

प्रशासन बना मूकदर्शक

सबसे हैरानी की बात यह है कि झीकनी और पाली जैसे गांव मुख्य फोरलेन मार्ग से बिल्कुल लगे हैं, यानी इन स्कूलों की दुर्दशा छिपी हुई नहीं है। फिर भी अधिकारी या तो जानबूझकर आंखें मूंदे हुए हैं या फिर लापरवाही को मौन स्वीकृति दे रहे हैं। रोज़ाना समय से पहले स्कूल बंद हो जाना अब यहां की आदत बन चुका है।

ब्लॉक शिक्षा अधिकारी का जवाब

इस पूरे मामले पर जब ब्लॉक शिक्षा अधिकारी जीपी अहिरवार से बात की गई तो उन्होंने कहा—
“समय से पहले स्कूल बंद होना पूरी तरह गलत है। इसका नियमानुसार समय 4:30 बजे तक है। जांच कराकर आवश्यक कार्यवाही की जाएगी।”

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