मध्यप्रदेश की 8 वर्षीय बच्ची बनी बाल आरक्षक, पिता की मौत के बाद अनुकम्पा नियुक्ति पर मिला नियुक्ति पत्र
उज्जैन। आमतौर पर कोई भी यह मानने को तैयार नहीं होगा कि चौथी कक्षा में पढ़ने वाली एक नन्ही बच्ची पुलिस विभाग में नौकरी पा सकती है। लेकिन मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में यह अनोखा और भावुक कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां पुलिस अधीक्षक (एसपी) प्रदीप शर्मा ने 8 साल की बच्ची इच्छा रघुवंशी को “बाल आरक्षक” पद पर नियुक्ति पत्र सौंपा। नियुक्ति पत्र के साथ-साथ उसकी जिम्मेदारियाँ और वेतन की जानकारी भी तय कर दी गई है। हालांकि पुलिस वर्दी पहनने के लिए उसे अभी करीब दस साल का इंतजार करना होगा।
पिता की मौत के बाद टूटा सहारा
इच्छा के पिता देवेंद्र सिंह रघुवंशी उज्जैन के महाकाल थाने में प्रधान आरक्षक के पद पर कार्यरत थे। 17 मई 2025 को ड्यूटी के दौरान उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई। परिवार में वे ही एकमात्र कमाने वाले थे। उनके अचानक चले जाने से पत्नी और बेटी के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया। घर में सिर्फ मां और आठ साल की बेटी ही बचीं।
मां-बेटी ने एसपी ऑफिस में किया आवेदन
पति की मौत के तीन महीने बाद, 2 सितंबर को देवेंद्र सिंह की पत्नी अपनी छोटी बेटी इच्छा के साथ उज्जैन पुलिस कंट्रोल रूम स्थित पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचीं। उनके हाथों में कॉपी-किताब नहीं बल्कि “अनुकम्पा नियुक्ति” के लिए आवेदन पत्र था। मां की इच्छा थी कि उनकी बेटी को पिता की जगह नौकरी मिल सके।
25 मिनट में मिल गया नियुक्ति पत्र
सरकारी कामकाज अक्सर लंबी प्रक्रिया और कागजी कार्रवाई में फंस जाते हैं, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। जैसे ही आवेदन एसपी प्रदीप शर्मा तक पहुँचा, उन्होंने संवेदनशीलता दिखाते हुए तुरंत आदेश की प्रक्रिया शुरू कर दी। सिर्फ 25 मिनट के भीतर ही बच्ची के नाम पर “बाल आरक्षक” पद की नियुक्ति स्वीकृत कर दी गई और आदेश पत्र परिजन को सौंप दिया गया।
पढ़ाई के साथ जुड़े रहेंगे नियम
फिलहाल इच्छा चौथी कक्षा की छात्रा है और केवल आठ साल की उम्र में पुलिस कर्मचारी की सूची में उसका नाम दर्ज हो गया है। नियमों के मुताबिक जब वह 18 साल की हो जाएगी और दसवीं की परीक्षा पास कर लेगी, तब उसे स्थायी आरक्षक पद पर नियुक्ति मिल जाएगी।
कितनी होगी सैलरी और क्या होंगे काम?
बच्ची को फिलहाल नव आरक्षक के आधे वेतन के बराबर वेतन मिलेगा। यानी हर महीने उसे 15,113 रुपये दिए जाएंगे। नियम के अनुसार उसे महीने में एक बार थाने आकर हस्ताक्षर करने होंगे और अधिकारियों को उसकी पढ़ाई-लिखाई की प्रगति की जानकारी भी देनी होगी। इस बीच, पिता की पेंशन उसकी मां को मिलती रहेगी।
यह मामला केवल प्रशासनिक निर्णय ही नहीं बल्कि उस संवेदनशीलता का प्रतीक है, जो एक परिवार के दुख को समझते हुए समाज और सिस्टम ने तुरंत राहत देने की कोशिश की। इच्छा फिलहाल पढ़ाई पर ध्यान देगी, लेकिन आने वाले वर्षों में वह अपने पिता की तरह पुलिस वर्दी पहनकर लोगों की सेवा करेगी।