हाईकोर्ट ने पलटा जिला अदालत का फैसला, पॉक्सो केस में दो आरोपित बरी
जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में पॉक्सो एक्ट के तहत आजीवन कारावास की सजा पाए दो आरोपितों को राहत दी है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस ए.के. सिंह शामिल थे, ने सुनवाई के दौरान पाया कि मामले में प्रस्तुत सबूत दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
हाईकोर्ट ने यह भी माना कि आरोपितों की डीएनए रिपोर्ट निगेटिव आई है और पीड़िता की उम्र से संबंधित प्रामाणिक दस्तावेज अदालत के समक्ष उपलब्ध नहीं कराए गए। इसी आधार पर छिंदवाड़ा जिला अदालत द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को निरस्त कर दिया गया।
क्या है मामला
अभियोजन पक्ष के अनुसार, घटना 31 दिसंबर 2022 की है। पीड़िता को उसका परिचित साहिल कबड्डी मैच दिखाने के बहाने ले गया। आरोप लगाया गया कि खेल खत्म होने के बाद वह लड़की को महावीर ढाना इलाके में स्थित जितेंद्र टांडेकर के घर के पीछे ले गया, जहां जितेंद्र और उसका दोस्त अरुण मौजूद थे। वहीं पर दोनों ने दुष्कर्म किया।
पीड़िता ने घटना के कुछ दिन बाद परिजनों को पूरी बात बताई। इसके बाद 3 जनवरी 2023 को थाने में एफआईआर दर्ज करवाई गई। जांच और सुनवाई के बाद, मार्च 2024 में छिंदवाड़ा की जिला अदालत ने दोनों आरोपितों को दोषी ठहराते हुए पॉक्सो एक्ट के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
अपील और हाईकोर्ट का फैसला
सजा के खिलाफ जितेंद्र और अरुण ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका कहना था कि व्यक्तिगत रंजिश के चलते उन पर झूठा केस दर्ज किया गया है। साथ ही, डीएनए रिपोर्ट उनके खिलाफ नहीं है, फिर भी उन्हें सजा दी गई।
हाईकोर्ट ने गवाहियों और सबूतों की गहराई से जांच की। सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि पीड़िता की मां ने बयान दिया था कि उसकी शादी को 25 साल हो चुके हैं और उसके तीन बच्चे हैं, जिनकी उम्र में अधिक अंतर नहीं है। स्कूल रिकॉर्ड में पीड़िता की जन्मतिथि 17 अगस्त 2008 दर्ज थी, लेकिन उसका कोई वैध प्रमाणपत्र अदालत के सामने पेश नहीं किया गया।
इन्हीं तथ्यों के आधार पर अदालत ने माना कि पीड़िता को नाबालिग साबित करने के लिए ठोस सबूत मौजूद नहीं हैं। साथ ही, डीएनए रिपोर्ट भी आरोपियों के पक्ष में रही। नतीजतन, हाईकोर्ट ने जिला अदालत का फैसला रद्द करते हुए दोनों आरोपितों को दोषमुक्त कर दिया