भोपाल/बैतूल। बैतूल पुलिस ने साइबर ठगी के एक जटिल नेटवर्क का पर्दाफाश किया है, जिसमें ऑनलाइन फ्रॉड से मिली रकम को बैंक कर्मचारी की मिलीभगत से ग्रामीणों के निष्क्रिय खातों में घुमाकर निकाला जा रहा था। यह गिरोह बैंक ऑफ महाराष्ट्र की खेड़ी सांवलीगढ़ शाखा के सात खातों के माध्यम से कुल 9 करोड़ 84 लाख 95 हजार रुपये का लेनदेन कर चुका था। पुलिस ने इस पूरे नेटवर्क के तीन सदस्यों को पकड़ा है और उनके पास से बड़ी मात्रा में डिजिटल डिवाइस, बैंक डॉक्युमेंट और नकदी जब्त की है।
शिकायत से खुली करोड़ों की हेराफेरी
पूरा मामला तब सामने आया जब 14 अक्टूबर 2025 को ग्राम कनारा के मजदूर बिसराम इवने ने अपने जन-धन खाते में दो करोड़ रुपये से ज्यादा की संदिग्ध ट्रांजेक्शन देखी। उसने तुरंत पुलिस को जानकारी दी। जांच में पता चला कि उसके खाते से जून 2025 से लगातार अवैध लेनदेन हो रहे थे, जिनकी कुल राशि 1.5 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी थी। इसके बाद पुलिस ने संबंधित अन्य खातों की जांच बढ़ाई, जिसमें पता चला कि कुल सात बैंक खातों का इस्तेमाल ठगी की रकम को जमा और निकालने के लिए किया जा रहा था।
इन खाताधारकों में शामिल थे—
बिसराम इवने, नर्मदा इवने, मुकेश उइके, नितेश उइके, राजेश बर्डे, अमोल और चंदन।
इनमें से कई खातों को वर्षों से उपयोग नहीं किया गया था, जो गिरोह के लिए आसान निशाना बन गए।
बैंक कर्मचारी की भूमिका,मौका मिलते ही निकालता था गुप्त जानकारी
इस पूरे घोटाले की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है अस्थायी बैंक कर्मचारी राजा उर्फ आयुष चौहान, जिसे पुलिस ने गिरफ्तार किया है।
जांच में उसने कबूल किया
वह बैंक में निष्क्रिय पड़े खातों की जानकारी इंदौर बैठे गिरोह तक पहुंचाता था।
खाताधारकों की पासबुक अपडेट करने के दौरान वह OTP, मोबाइल नंबर, ATM कार्ड से जुड़ी जानकारियाँ निकाल लेता था।
राजेश बर्डे, जिसकी मृत्यु हो चुकी थी, उसका खाता भी बंद नहीं किया गया था। गिरोह ने मोबाइल नंबर बदलवाया, नया ATM जारी कराया और इंटरनेट बैंकिंग भी सक्रिय कर ली।
यह जानकारी गिरोह तक एक किट के रूप में भेजी जाती थी, जिसमें सिम, ATM, पासबुक और चेकबुक शामिल होते थे।
इंदौर से पकड़े गए गिरोह के संचालक
पुलिस की टीम ने इंदौर के नंदानगर में दबिश देकर इस साइबर नेटवर्क के प्रमुख अंकित राजपूत (32) और उसके साथी नरेंद्र सिंह राजपूत (24) को गिरफ्तार किया।
ये दोनों ही ऑनलाइन फ्रॉड से कमाई गई रकम को ग्रामीणों के खातों में ट्रांसफर कर विभिन्न माध्यमों से निकालते थे।
कार्रवाई में भारी मात्रा में डिजिटल सबूत मिले
छापेमारी में पुलिस ने ऐसे उपकरण बरामद किए जो करोड़ों की हेराफेरी का प्रमाण देते हैं।
15 मोबाइल फोन
25 सिम
21 ATM कार्ड
11 पासबुक
7 चेकबुक
2 POS मशीन
2 लैपटॉप
69 ATM जमा रसीदें
₹28,000 नकद
कई रजिस्टर और डायरी
कैसे करते थे ऑनलाइन ठगी?
गिरोह देशभर में फैले पीड़ितों को विभिन्न तरीकों से जाल में फंसाता था—
गेमिंग ऐप
ऑनलाइन बेटिंग
क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी
फिशिंग लिंक
अन्य डिजिटल स्कैम
पीड़ितों से ठगी गई रकम पहले ग्रामीणों के निष्क्रिय खातों में भेजी जाती, फिर ATM, POS मशीन और बैंकिंग ऐप के जरिए तुरंत निकाल ली जाती थी।
किट ट्रांसफर’ मॉडल,गिरोह की नई चाल
बैंक कर्मचारी खातों की गोपनीय जानकारी, ATM, सिम और बैंक डॉक्युमेंट को एक किट बनाकर बस से इंदौर भेजता था। इंदौर में बैठे आरोपी इन किटों का उपयोग कर करोड़ों की रकम को इधर-उधर कर देते थे।
देशभर में ब्लॉक किए गए कई खाते
जांच के बाद जिन खातों से संदिग्ध लेनदेन हो रहे थे, उन्हें विभिन्न राज्यों में ब्लॉक किया गया
नर्मदा इवने का खाता — बेंगलुरु
राजेश बर्डे का खाता — अहमदनगर
मुकेश का खाता — हरियाणा
अमोल का खाता — मुंबई
गिरोह में कौन, क्या करता था
राजा उर्फ आयुष चौहान, बैंक कर्मचारी
निष्क्रिय खातों की जानकारी गिरोह तक पहुंचाता था
पासबुक अपडेट के बहाने ग्राहकों का डेटा चुरा लेता था
मृत खातों को भी सक्रिय रखकर दस्तावेज जुटाता था
अंकित राजपूत, मास्टरमाइंड
ATM, पासबुक और बैंक किट के जरिए ट्रांजेक्शन करता था
देशभर में फैली ऑनलाइन ठगी की रकम को नियंत्रित करता था
नरेंद्र राजपूत ,कैश निकालने का जिम्मेदार
ATM और अन्य माध्यमों से बार-बार बड़े कैश निकासी करता था








