बकस्वाहा-शाहगढ़ रेंज की कार्रवाई के बावजूद वन विभाग की कार्यशैली पर उठे सवाल
सागर/शाहगढ़। बकस्वाहा वन परिक्षेत्र के मुढ़िया सुजपुरा बीट में खैर के पेड़ों की अवैध कटाई और तस्करी का मामला सामने आया है, जिसने वन विभाग की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सोमवार को तस्करों ने पिकअप वाहन में भूसा भरकर उसके नीचे अवैध खैर लकड़ी छुपाई और उसे सुजपुरा बीट से मदनतला गांव के रास्ते ले जाने का प्रयास किया। मगर मुखबिर की सूचना पर बकस्वाहा और शाहगढ़ रेंज के संयुक्त वन अमले ने घेराबंदी कर वाहन को बस्ती के अंदर से जब्त कर लिया।
तस्करों ने वाहन को गांव के तालाब वाले रास्ते से तेज रफ्तार में अंदर की ओर घुसा दिया, जिससे वहां खेल रहे करीब आधा दर्जन मासूम बच्चे दुर्घटना का शिकार होते-होते बचे। इस अप्रत्याशित स्थिति से घबराए ग्रामीणों ने चालक को खरी-खोटी सुनाई, लेकिन वह मौका देखकर भाग निकला। उसके साथ मौजूद अन्य लकड़ी माफिया भी फरार हो गए।
बस्ती के भीतर लावारिस हालत में खड़े पिकअप वाहन (MP 35 GA 0612) की तलाशी लेने पर भूसे के नीचे बड़ी मात्रा में खैर की लकड़ी बरामद हुई, जिसकी अनुमानित कीमत चार लाख रुपये बताई जा रही है। दोनों रेंज के कर्मचारियों ने हाथ से धक्का लगाकर वाहन को सड़क तक पहुंचाया और फिर उसे जब्त कर कार्यालय तक ले जाया गया।
हालांकि इस पूरे मामले में बकस्वाहा वन परिक्षेत्र अधिकारी लव प्रताप सिंह किसी भी ठोस जानकारी से बचते दिखे। उन्होंने केवल इतना बताया कि खैर की लकड़ी के साथ एक वाहन जप्त किया गया है, लेकिन लकड़ी की मात्रा, आरोपियों की पहचान या लकड़ी की मूल लोकेशन की पुष्टि नहीं कर सके।
पहले भी उठ चुके हैं सवाल
गौरतलब है कि इससे पहले भी दो महीने पूर्व दरदौनिया-सगौरिया बीट से जब्त की गई 40 हजार की खैर लकड़ी के मामले को विभाग ने दबा दिया था। और अब एक बार फिर लाखों की लकड़ी दूसरी बार उसी बीट से पकड़ी गई है, जिससे यह इलाका माफियाओं के लिए ‘सॉफ्ट टारगेट’ बना हुआ प्रतीत होता है।
सूत्रों का दावा है कि खैर की लकड़ी की मांग गुटखा और कत्था उद्योगों में बहुत अधिक है, और इसके बड़े खरीदार उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्य हैं। यही वजह है कि इस अवैध कारोबार में एक संगठित गिरोह सक्रिय है, जो अपने मजदूरों और वाहनों के साथ जंगलों में पहुंचकर कटाई करता है और फिर माल को बाहर भेज देता है।
वन विभाग की निष्क्रियता या मिलीभगत?
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चिंताजनक बात यह है कि बड़ी संख्या में पेड़ काटे जाते रहे और उनका परिवहन होता रहा, लेकिन न तो स्थानीय रेंजर और न ही उच्च अधिकारी समय रहते इसकी भनक ले सके। सवाल यह भी उठता है कि क्या वन विभाग की नजर से यह सब बचता रहा या फिर मिलीभगत का मामला है?
शाहगढ़ रेंज के अधिकारियों का कहना है कि वे भी काफी समय से इस गतिविधि पर नजर रखे हुए थे और उसी प्रयास का नतीजा है कि सोमवार को यह कार्रवाई सफल हो सकी। वहीं बकस्वाहा रेंज के अधिकारी फिलहाल स्थिति को स्पष्ट करने में असमर्थ हैं।
जांच की जरूरत और जवाबदेही तय हो
अवैध कटाई और लकड़ी तस्करी की यह घटना केवल एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संकट की चेतावनी है। जंगलों का यूं उजड़ना वन्यजीवों के आवास को खतरे में डालता है और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। अब समय आ गया है कि वन विभाग की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाई जाए और दोषियों को सख्त सजा दी जाए।
वन क्षेत्रों में निगरानी को मजबूत करने, टेक्नोलॉजी के उपयोग को बढ़ाने और जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की जरूरत है, ताकि जंगल सुरक्षित रहें और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
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