मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के लिए आखिरकार जिस नाम पर मुहर लगी वह है बैतूल से विधायक हेमंत खंडेलवाल। सवाल उठता है आखिर खंडेलवाल को ही यह जिम्मेदारी क्यों दी गई ?
भाजपा के भीतर की हलचल पर नजर डालें तो तस्वीर साफ होती है। सबसे पहले, खंडेलवाल का सियासी सफर खुद एक मजबूत संदेश देता है। मथुरा में जन्मे खंडेलवाल ने पिता विजय खंडेलवाल के असमय निधन के बाद राजनीति में पहला बड़ा कदम रखा और उपचुनाव जीतकर सीधे संसद पहुंचे। इसके बाद 2013 से 2018 और फिर 2023 में बैतूल से विधायक बनना साबित करता है कि ज़मीनी पकड़ में वे मजबूत खिलाड़ी हैं।
दूसरी बड़ी वजह….. संगठन में काम करने का अनुभव। खंडेलवाल पहले भाजपा के जिला अध्यक्ष रह चुके हैं, प्रदेश कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं और फिलहाल कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। यानी संगठन को भीतर से समझने वाले नेता हैं, जिन पर केंद्रीय नेतृत्व और मुख्यमंत्री मोहन यादव दोनों को भरोसा है।
तीसरी अहम बात…. क्षेत्रीय समीकरण भाजपा का मध्यप्रदेश अध्यक्ष चुनते वक्त मालवा-निमाड़ इलाके को अब तक ज्यादा तरजीह मिलती रही है। खंडेलवाल के नाम से पार्टी ने बैलेंस बनाने की कोशिश की है। बैतूल जैसे इलाके से अध्यक्ष बनाने का मतलब है। विंध्य बुंदेलखंड और महाकौशल के साथ संतुलन साधना।
मुख्यमंत्री मोहन यादव केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी उनके नाम का प्रस्ताव देकर ये साफ कर दिया कि खंडेलवाल को शीर्ष नेतृत्व की पूरी सहमति प्राप्त है।
वैसे, हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा ने राजीव बिंदल को तीसरी बार कमान देकर साफ किया कि वह अनुभवी और संगठन के पुराने सिपाहियों पर ही भरोसा जता रही है। ऐसे में खंडेलवाल का नाम किसी को चौंकाता नहीं, बल्कि पार्टी की रणनीति को और साफ करता है। 2028 की तैयारी, मजबूत संगठन और संतुलित समीकरण।