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Suraj Sen

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मध्यप्रदेश में ओबीसी को 27% आरक्षण देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, सरकार से मांगा जवाब

मध्यप्रदेश में ओबीसी को 27% ...

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मध्यप्रदेश में ओबीसी को 27% आरक्षण देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, सरकार से मांगा जवाब

मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को अहम सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत ने राज्य सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि आखिर जो 13% पद अभी रोके गए हैं, उन पर भर्ती करने में क्या अड़चन है। कोर्ट ने इसके लिए प्रदेश के मुख्य सचिव से शपथ-पत्र (एफिडेविट) मांगा है।

गौरतलब है कि प्रदेश सरकार ने 2019 में ओबीसी के लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 27% कर दिया था। इसके लिए बाकायदा कानून भी पारित किया गया, लेकिन यह व्यवस्था अभी तक पूरी तरह लागू नहीं हो पाई है।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस आर महादेवन शामिल हैं, ने यह मामला सुना। सुनवाई कोर्ट नंबर-12 में हुई और यह केस क्रमांक 35 पर सूचीबद्ध था। ओबीसी महासभा की तरफ से दलील दी गई कि प्रदेश की कुल आबादी में पिछड़ा वर्ग का हिस्सा 51% है, लेकिन उन्हें अब भी पूरा हक नहीं मिल रहा।

यह मामला पहले मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में चल रहा था। वहीं से करीब 70 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की गई हैं। इन्हीं याचिकाओं पर आगे की कार्रवाई होनी है। हालांकि शुक्रवार को हुई सुनवाई में फिलहाल ओबीसी आरक्षण लागू करने को लेकर कोई अंतरिम राहत नहीं दी गई।

याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा

सुनवाई के दौरान ओबीसी महासभा की तरफ से वकीलों ने तर्क रखा कि प्रदेश के अलग-अलग विभागों ने भर्तियों के लिए 27% आरक्षण के अनुसार विज्ञापन निकाले थे। इसके बावजूद अब तक 13% पदों को रोका गया है। उनका कहना था कि इस रोक को हटाने के लिए अदालत को इस याचिका पर सुनवाई करनी चाहिए।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले से ही इस विषय से जुड़ी 50 से अधिक याचिकाएं विचाराधीन हैं, इसलिए नई याचिका को भी उन्हीं में शामिल कर सुनवाई की जाएगी। अदालत ने राज्य सरकार से स्पष्ट रूप से पूछा है कि 13% पद क्यों होल्ड किए गए हैं।

सरकार पुराने आदेश का हवाला दे रही है

ओबीसी महासभा के वकीलों ने कोर्ट को बताया कि 2019 में जब यह एक्ट पास हुआ था, तभी से इसे पूरी तरह लागू नहीं किया गया। सरकार हाईकोर्ट के 19 मार्च 2019 के एक पुराने अंतरिम आदेश का हवाला देकर बच रही है, जबकि उस आदेश के बावजूद एक्ट पर कोई सीधी रोक नहीं लगी। इसलिए यह 27% आरक्षण तुरंत लागू किया जाना चाहिए।

इंदिरा साहनी केस का भी जिक्र

पिछली सुनवाई में अदालत ने इंदिरा साहनी केस का संदर्भ दिया था, जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय की गई थी। इस पर याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मप्र में ओबीसी की जनसंख्या आधे से अधिक है, लेकिन सरकारी नौकरियों में उन्हें अभी सिर्फ करीब 13.66% आरक्षण मिल रहा है।

राज्य सरकार ने सलाह के आधार पर एक नोटिफिकेशन जारी कर 27% आरक्षण को रोक रखा है और 87-13% का फार्मूला लागू कर दिया है, जिसके चलते बीते कई सालों से भर्तियों में पिछड़ा वर्ग पूरा लाभ नहीं उठा पा रहा।

अब तक की स्थिति क्या है 

साल 2019 में कमलनाथ सरकार ने ओबीसी को मिलने वाला आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था। इसके बाद कुल आरक्षण का आंकड़ा 63% हो गया था। हालांकि, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने मेडिकल पीजी प्रवेश परीक्षा में इस बढ़ोतरी को रोक दिया था। इसके बाद 2024 में सभी संबंधित याचिकाओं को हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। फिलहाल भर्तियां 87:13 के अनुपात से ही हो रही हैं, जब तक सुप्रीम कोर्ट कोई अंतिम निर्णय नहीं देता।

ओबीसी महासभा ने क्या मांग रखी

ओबीसी महासभा के कोर कमेटी सदस्य और एडवोकेट धर्मेंद्र कुशवाह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस भेजकर पूछा है कि आखिर क्यों 27% आरक्षण लागू नहीं किया जा रहा। सुनवाई करीब 10 मिनट तक चली। राज्य सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने अदालत में पक्ष रखा और उन्होंने 27% आरक्षण को फिलहाल लागू करने का विरोध किया।

महासभा की ओर से अदालत से यह गुजारिश की गई थी कि अंतिम फैसले तक अंतरिम तौर पर ही सही, 27% आरक्षण लागू कर दिया जाए, ताकि जो 13% पद होल्ड हैं, उन पर नियुक्तियां की जा सकें। लेकिन सरकार की ओर से इस पर भी आपत्ति दर्ज कराई गई। महासभा ने जल्द सुनवाई के लिए अलग तारीख की भी मांग की, परंतु उसे भी खारिज कर दिया गया।

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मैं सूरज सेन पिछले 6 साल से पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूं और मैने अलग अलग न्यूज चैनल,ओर न्यूज पोर्टल में काम किया है। खबरों को सही और सरल शब्दों में आपसे साझा करना मेरी विशेषता है।
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