Kandhe wali kali : सागर। नवरात्रि के शुभारंभ के साथ पूरे शहर में मां दुर्गा की भक्ति का रंग छा गया है। जगह-जगह पंडालों में देवी मां के विविध स्वरूपों की स्थापना हो चुकी है। इसी क्रम में सोमवार सुबह शहर की सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध पुरव्याऊ की कंधे वाली काली (चल माई वाली काली माई) का विधि-विधान से प्रतिष्ठापना की गई। सुबह 10:30 बजे शुभ मुहूर्त में प्रतिमा को भक्तों ने अपने कंधों पर उठाकर पंडाल तक पहुंचाया।
जैसे ही प्रतिमा पंडाल में विराजमान हुई, पूरा इलाका जयकारों से गूंज उठा। भक्तों के चेहरे पर उल्लास और आस्था की चमक देखने लायक थी। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
121 साल से चल रही परंपरा
इस वर्ष कंधे वाली काली की 121वीं स्थापना की गई है। यह परंपरा वर्ष 1905 से निरंतर चली आ रही है, जब मूर्तिकार हीरा सिंह राजपूत ने पहली बार पुरव्याऊ टोरी पर महिषासुर मर्दिनी के स्वरूप में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की थी। उस समय से ही माता रानी की प्रतिमा को भक्त कंधों पर उठाकर पंडाल तक लाते हैं और इसी पारंपरिक रीति से उनका विसर्जन भी किया जाता है।
कोलकाता के कलाकार बनाते हैं पंडाल
हर साल की तरह इस बार भी पंडाल की सजावट और डिजाइन कोलकाता से आए विशेष कलाकारों ने तैयार की। लगभग 20 दिन पहले ही तैयारियां शुरू कर दी गई थीं। आकर्षक और भव्य पंडाल देखने के लिए शहरवासियों में खासा उत्साह है।
प्रतिदिन पांच आरतियां और धार्मिक आयोजन
प्रतिमा स्थापना के साथ ही नवरात्रि उत्सव की शुरुआत हो गई है। यहां प्रतिदिन पांच विशेष आरतियां होती हैं
सुबह 6 बजे,
सुबह 9 बजे,
दोपहर 12 बजे,
शाम 6 बजे,
और रात 9 बजे।
इन आरतियों में दूर-दराज से श्रद्धालु शामिल होकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके साथ ही भजन-कीर्तन, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाएगा।
कंधे वाली काली न केवल नवरात्रि की शोभा हैं बल्कि सागर की आस्था और परंपरा का प्रतीक भी हैं। 120 से अधिक वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी उसी उत्साह और भक्ति के साथ निभाई जा रही है। श्रद्धालुओं का मानना है कि मां की झलक मात्र से हर कष्ट दूर हो जाता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
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