जब तक नहीं मिलेगा न्याय तब तक उबलती रहेगी चाय !
“मैं तुम्हें सबक सिखा दूंगी… अब जेल की हवा खाओगे…”
ये डायलॉग अगर फिल्मों में सुनाई दे तो मजा आता है, लेकिन सोचिए अगर किसी की जिंदगी में ये डायलॉग सच हो जाए तो क्या होगा?
मध्यप्रदेश के नीमच जिले के कृष्णकुमार धाकड़ के साथ ठीक ऐसा ही हुआ। जो कभी UPSC की तैयारी कर रहे थे, आज वो “498A टी कैफे” चलाने को मजबूर हैं। और ये मजबूरी भी ऐसी कि इसमें दर्द भी है, तंज भी और हिम्मत की चुस्की भी।
जहां चाय भी उबलती है और कहानी भी!
केके धाकड़ ने जो चाय की दुकान लगाई है, वो महज कमाने का जरिया नहीं है, बल्कि ये उनके संघर्ष और सिस्टम से लड़ाई का प्रतीक बन चुकी है। उन्होंने अपनी टपरी का नाम रखा है — “498A टी कैफे”।
अब आप सोच रहे होंगे, ये नाम क्यों? क्योंकि यही वो धारा है जिसने उनकी जिंदगी को पटरी से उतार दिया।
धाकड़ कहते हैं, “जब तक नहीं मिलेगा न्याय, तब तक उबलती रहेगी चाय।”
उनकी दुकान पर बड़े-बड़े बैनर लगे हैं —
👉 आओ चाय पर करें चर्चा… 125 में कितना देना पड़ेगा खर्चा?
👉 498A में कौन-कौन झुलसा है, यहां सबकी चाय मिलेगी।
यह दुकान अब उनके दर्द का मंच बन चुकी है।
कहानी UPSC से शुरू, लेकिन टपरी पर खत्म!
नीमच जिले के अठाना कस्बे के रहने वाले केके धाकड़ पढ़ाई में तेज थे। UPSC की तैयारी कर रहे थे।
2018 में राजस्थान के अंता कस्बे की एक युवती से उनकी शादी हुई। दोनों ने मिलकर मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया और महिलाओं को रोजगार भी देने लगे।
कामयाबी इतनी मिली कि 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनके काम की तारीफ करते हुए खुद शुभारंभ किया। कारोबार चल पड़ा, शहद की डिमांड बढ़ने लगी और सब कुछ सही लग रहा था। लेकिन फिर कहानी में ऐसा ‘ट्विस्ट’ आया कि जिंदगी का स्वाद बदल गया।
2022 में टूटा रिश्ता, बिखर गई जिंदगी
अक्टूबर 2022 में उनकी पत्नी बिना बताए मायके चली गई और कुछ समय बाद घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना का केस ठोक दिया।
498A, 125 – एक साथ दो धाराओं में केके धाकड़ उलझ गए। बिजनेस ठप हो गया, समाज से दूरी बन गई और आर्थिक स्थिति भी बिखर गई।
धाकड़ बताते हैं, “तीन साल से मैं झूठे मुकदमों में फंसा हूं। मां के अलावा अब कोई सहारा नहीं। कई बार आत्महत्या करने का मन हुआ, लेकिन मां के आंसुओं ने रोक लिया।”
जहां फंसाया, वहीं चाय बेचूंगा!
सब कुछ खत्म होने के बाद भी केके धाकड़ ने हार नहीं मानी। उन्होंने ठान लिया कि अब उसी इलाके में चाय बेचेंगे जहां उन्हें फंसाया गया।
उन्होंने अपने ससुराल के पास ‘498A टी कैफे’ के नाम से चाय की दुकान खोल ली। अब वे खुद को ‘498A वाले बाबा’ कहते हैं।
उनकी दुकान पर एक वरमाला, सेहरा और हथकड़ी भी टंगी रहती है। वो खुद हथकड़ी पहनकर चाय बनाते हैं ताकि लोगों को याद रहे कि ‘शादी में मिठाई नहीं, कभी-कभी हथकड़ी भी मिलती है।’
चाय पर चर्चा: दर्द भी, व्यंग्य भी
धाकड़ की दुकान अब लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बन गई है। लोग सिर्फ चाय पीने नहीं आते, बल्कि उनकी कहानी सुनने भी आते हैं।
उनका स्लोगन — ‘जब तक नहीं मिलेगा न्याय, तब तक उबलती रहेगी चाय‘ — इलाके में काफी मशहूर हो चुका है।
वे कहते हैं, “कानून के दुरुपयोग से मैं बर्बाद हुआ हूं, लेकिन अब मैं अपनी चाय की दुकान से लोगों को जागरूक करूंगा। जब तक सच सामने नहीं आएगा, तब तक मैं चाय बेचते-बेचते अपनी लड़ाई जारी रखूंगा।”
मुकदमा अब भी अदालत में, लेकिन हौसला बुलंद!
धाकड़ के खिलाफ चल रहे केस अभी भी अदालत में विचाराधीन हैं। लेकिन समाज में उनकी कहानी अलग पहचान बना चुकी है।
कृष्णकुमार धाकड़ अब हर दिन चाय के साथ अपनी आपबीती सुनाते हैं और सिस्टम से हिम्मत के साथ भिड़े हुए हैं।