कहते हैं… दीवारें अगर बोल पातीं तो गढ़पहरा किला आज भी वो प्रेम कहानी जरूर सुनाता, जिसमें प्यार था, जुनून था, लेकिन अंत में बची सिर्फ वीरानी। एक राजा जिसने अपने दिल की बात छुपाई, एक नर्तकी जिसने जान की बाजी लगाई और एक श्राप जिसने सदियों तक किले को खामोश कर दिया। क्या आप जानना चाहते हैं उस अधूरी मोहब्बत की दास्तान, जिसने इतिहास को भी हैरान कर दिया आइए जानते है…
सागर का गढ़पहरा किला : झांसी रोड पर बसे गढ़पहरा किले की दीवारें आज भले ही खंडहर हो चुकी हों, लेकिन इनके पत्थरों में आज भी एक अधूरी प्रेम कहानी की गूंज सुनाई देती है। करीब चार सौ साल पुराना यह किला केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि राजा और नर्तकी के प्यार की वो कहानी है, जो छल, दर्द और श्राप में हमेशा के लिए कैद हो गई।
जब एक नर्तकी ने राजा का दिल चुरा लिया
कहते हैं कि गढ़पहरा किले में रहने वाले एक राजा का दिल किले के सामने पहाड़ी पर रहने वाली एक खूबसूरत नट जाति की नर्तकी पर आ गया। नर्तकी की अदाएं, उसका नृत्य और उसकी सादगी ने राजा को इस कदर मोहित कर लिया कि वह अपने सारे बंधनों को भूलकर उससे प्रेम करने लगा। राजा ने उसके लिए शीश महल बनवाया, जिसे वह अपनी प्रेमिका को तोहफे में देना चाहता था। लेकिन समाज की परंपराएं और रानी का मान-सम्मान राजा को अपने प्यार को दुनिया के सामने लाने से रोक रहा था।
राजा की शर्त और प्रेम में किया छल
राजा अपने दिल की बात तो कह नहीं सका, लेकिन उसने एक अनोखी शर्त रख दी। राजा ने नर्तकी से कहा कि अगर वह कच्ची रस्सी पर नृत्य करते हुए शीश महल तक पहुंच जाए, तो वह महल उसी का हो जाएगा। नर्तकी ने न डरते हुए इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। वह प्रेम में विश्वास रखकर आगे बढ़ती रही और आधा रास्ता भी पार कर लिया था, लेकिन तभी राजा ने अपने सेवक से रस्सी कटवा दी।
नर्तकी अचानक नीचे गिर गई और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। उसकी आखिरी सांसों में उसने राजा को श्राप दिया कि उसका वंश खत्म हो जाएगा और यह भव्य किला एक दिन वीरान होकर खंडहर में बदल जाएगा।
आज भी सुनाई देती है अधूरी प्रेम कहानी की गूंज
कहा जाता है कि नर्तकी का वह श्राप सच साबित हुआ। आज गढ़पहरा किला सिर्फ टूटे हुए पत्थरों का ढेर बनकर रह गया है। कभी जहां राजसी ठाठ-बाट और प्रेम की हलचल थी, वहां अब सन्नाटा पसरा है। महंत गोकलदास बताते हैं कि इस किले से 360 गांव जुड़े हुए थे, लेकिन समय के साथ सब खत्म हो गया। यहां आज भी कई लोग नर्तकी की आत्मा की कहानी सुनाते हैं, मानो उसका अधूरा प्रेम अभी भी इस किले में भटक रहा हो।
गढ़पहरा की वीरता भी है इतिहास का हिस्सा
गढ़पहरा केवल प्रेम कहानी के लिए नहीं जाना जाता, बल्कि 1857 की क्रांति में भी इस किले का बड़ा योगदान रहा। उस समय के राजा मर्दन सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला और एक साल तक कड़ा संघर्ष किया। सीमित सैनिकों और साधनों के बावजूद उन्होंने ब्रिटिश सेना का डटकर मुकाबला किया। शाहगढ़ के राजा बख्तबली भी उनके साथ थे। बाद में उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे से भी सहयोग मांगा, लेकिन ब्रिटिश सेना की ताकत के आगे यह संघर्ष ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका। अंत में राजा मर्दन सिंह और बख्तबली को हार मानकर समर्पण करना पड़ा।