सागर, मध्य प्रदेश। दीपावली के उत्सव के ठीक अगले दिन सागर के तिली क्षेत्र स्थित श्री देव गोवर्धन धाम मंदिर में दो दिवसीय गोवर्धन मेला की शुरुआत हुई। परंपरा, आस्था और लोकसंस्कृति के इस अनोखे संगम में सुबह से ही श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। दूर-दूर से आए भक्त भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन के लिए कतारों में खड़े नजर आए।
गोवर्धन धाम का अद्भुत स्वरूप और आस्था का केंद्र
मंदिर परिसर में भगवान श्रीकृष्ण की बाल प्रतिमा विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र बनी हुई है, जिसमें वे अपनी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत धारण किए हुए हैं। भक्तों का विश्वास है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। गोवर्धन पूजा के इस अवसर पर भक्तों ने पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और विशेष अनुष्ठानों में भाग लिया।
मंदिर प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन द्वारा मेले के दौरान सुरक्षा, यातायात और व्यवस्था के लिए विशेष इंतज़ाम किए गए हैं। मंदिर परिसर में भक्तों की भारी भीड़ के बावजूद श्रद्धा और अनुशासन का वातावरण देखने को मिला।
300 साल पुराना मराठाकालीन मंदिर, 1994 में हुआ पुनर्निर्माण
गोवर्धन मंदिर ट्रस्ट के संरक्षक रामकिशन यादव ने बताया कि श्री देव गोवर्धन धाम मंदिर लगभग 300 वर्ष पुराना मराठाकालीन धरोहर है। ब्रिटिश शासनकाल और वन विभाग के पुराने अभिलेखों में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है।
पहले यह स्थान घने जंगलों के बीच एक छोटी-सी मढ़िया के रूप में मौजूद था। वर्ष 1993 में मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ और 1994 में इसका भव्य स्वरूप तैयार हुआ। उसी वर्ष भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य प्रतिमा स्थापित की गई। मंदिर सागर के तिली क्षेत्र में गवर्नमेंट जिला आयुर्वेदिक हॉस्पिटल के समीप स्थित है और आज यह सागर व आसपास के क्षेत्रों में आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है।
100 साल पुराना मेला: मौनिया नृत्य और दीवारी गीतों की परंपरा
दीपावली के दूसरे दिन से लगने वाला यह गोवर्धन मेला भी अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखता है। माना जाता है कि इस मेले की परंपरा लगभग 100 वर्ष पुरानी है। इस दौरान मौनिया नर्तक अपनी पारंपरिक मौनिया नृत्य की प्रस्तुति देकर वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं।
साथ ही, ग्रामीण कलाकार “दीवारी” नामक लोकगीतों का गायन करते हैं, जिनकी मधुर ध्वनि से पूरा मंदिर परिसर गूंज उठता है। मौनिया नर्तक इस मंदिर को अपना मुख्य पूजा स्थल मानते हैं और हर वर्ष यहां आकर पूजा कर भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
मौनिया नृत्य की उत्पत्ति: भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी लोककथा
स्थानीय बुजुर्ग और जानकार मोहन यादव बताते हैं कि मौनिया नृत्य की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी एक प्राचीन कथा से मानी जाती है। कथा के अनुसार, जब श्रीकृष्ण यमुना किनारे बैठे थे, तभी उनकी गायें कहीं भटक गईं। गायों के बिछड़ जाने से वे मौन हो गए। जब ग्वाल बालों ने मेहनत कर सभी गायों को वापस लाकर प्रस्तुत किया, तब श्रीकृष्ण ने अपना मौन तोड़ा।
इसी घटना की स्मृति में मौनिया परंपरा का आरंभ हुआ। तब से लेकर आज तक, मौनिया नर्तक दीपावली के अगले दिन मौन व्रत रखकर 12 गांवों की परिक्रमा करते हैं। इस दौरान वे हर गांव के मंदिर में जाकर भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करते हैं और अंत में श्री देव गोवर्धन धाम मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
भक्ति, लोकसंस्कृति और एकता का प्रतीक बना गोवर्धन मेला
दो दिनों तक चलने वाला यह मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि बुंदेलखंड की समृद्ध लोकसंस्कृति का सजीव उदाहरण भी है। पारंपरिक नृत्य, लोकगीत, पूजा-अर्चना और श्रद्धालुओं की उमंग इस आयोजन को अद्वितीय बना देते हैं।
हर वर्ष की तरह इस बार भी जिलेभर से सैकड़ों श्रद्धालु और मौनिया कलाकार इस भव्य आयोजन में शामिल हुए हैं। दीपावली के इस पावन अवसर पर तिली क्षेत्र का श्री देव गोवर्धन धाम एक बार फिर भक्ति, संस्कृति और लोक आस्था का केंद्र बन गया है।








